जब भी नया साल आता है …

61

जब भी नया साल आता है 
मन में यही ख़याल आता है,
सब खुश रहें आबाद रहें,
जिधर से भी गुज़रे महफिलें ख़ास रहें
तममन्नाएँ पूरी हों
रिश्तों में कभी ना दूरी हो ,
दो हज़ाए सोलह कुछ ऐसा कर जाएँ 
सब के झोले में खुशियाँ भर जाएँ.
नया साल मुबारक……

62.

क्यों करते हैं हम क्रोध

क्यों नही करते इसका बोध,

जबकि जानते हैं हम

कि क्रोध की अग्नि हमारे शरीर को करती नष्ट,

और बुद्धि को भ्रष्ट

क्या क्रोध करने उपरांत

हो जाता है मन शांत,

नहीं……

फिर क्यों लेते इसका सहारा

जब मिलता नही किनारा……….

63

पैगाम को हमारे तुम काग़ज़ का टुकड़ा समझती हो 
जवाब देना तो दूर
दरवाज़े पर ही फैंक गुज़रती हो,
देखे हमारे पियार में ज़्यादा ताक़त है
या तुम्हारे खिलवाड़ में
तुम टिके रहो अपनी अदा पर
हम चाहते रहेगें तुम्हें काग़ज़ की आड़ में….

64

तेरी आँखों का पानी
जैसे हो सुबह मस्तानी,
तेरी मुस्कुराहट 
मानो कोयल के गुनगुनाने की आहट,
तेरे चेहरे का उजाला
जिसके आगे सूरज भी लगे काला,
तेरी बातें
लगें चाँदनी रातें,
क्या क्या और कहूँ………………
कि जब जब तुम मुस्कुरातें
तार दिलों के टकराते
तेरे संग जीने की तलाप में
दो कदम और आगे भाड़ा ते…. 

65

एक प्रधान मंत्री ऐसा भी  (नरेंद्र दामोदर दास मोदी )

एक महान शक्सियत जिसकी हूँ, मैं भक्त जिसने मिसाल करी कायम 

चाय बेचने से लेकर प्रधान मंत्री बनने का रखना दम,

जिसे विवेकानंद जी की किताबों ने दी प्रेरणा ,

पिलू फूल जैसे नाटक की नहीं की जा सकती कल्पना

पहुँच गए हिमालय करने अध्यात्मिक खोज 

साधू संतों की सेवा के आगे नहीं था कोई होश ,

वकील साहब के संग का उन पर चढ़ा था ऐसा रंग

कि उंगली पकड़ उनकी एलान कर दी दुश्मनों के खिलाफ जंग ,

बारह साल की उम्र में ही पकड़ा मगरमच्छ 

क्योकि समय आ गया था बदलने का मंदिर का ध्वज ,

 चलता छप्पन इंच सीना तान कर मानवता की वो पहचान है

खोद कर बनाना जानते है जो रास्ते उन वीरो का प्रतिमान है,

गुजरात को बनाकर मिट्टी से सोना दिया नारी को सम्मान है,

कोने कोने तक पहुँचाई जान सुविधा, वहाँ कोई ना किसी का गुलाम है,

स्वतन्त्राता दिवस के शुभ अवसर पर जब दहाड़ा ये शेर

फूँक दिया दुश्मनो के इरादों, को कर दिया ढेर रम ढेर ,

चका चौंध रह गई आँखें देख कर ऐसा अनुभवी विद्वान ,

जिसके संघर्ष का नही किया जा सकता व्याख्यान,

तन्मय है वो देश भक्ति में ,आश्वस्त हैं हम उसकी कश्ती में,

भूगर्भ से भी सूंघ लेता है जो दुश्मन की आहाट 

भगवान से मिली  है उसको ऐसी विरासत,

उस मोदी के मैं गाती हूँ गुणगान

जिसके समक्ष है, हर अविरुध फ़ैसले का समाधान,

चाहे कोई भी हो जात , रोक सकता है वो होता हुआ हर उत्पात,

गरजने से जिसके काँप जाए रिपु ,बरसने पर भस्म हो जाता शत्रु,

हर मियाद पर है वो अटल, सद्गुणों से भरा है जिसका मुखमंडल,

नाद में जिसकी बैठी माँ सरस्वती, इसलिए ठान लेता जो वो करता वही,

हर तर्क का है उसके पास प्रमाण  ,उस मोदी का करती हूँ गुणगान ,

चलता गर उत्तर की ओर तो नज़रे रखता दक्षिण पर

यदि कार्य कर रहा हो पूरब में तो ध्यान होता पश्चिम पर,

प्रतिक्षण कार्य करता सिंधु की भाँति  ,बेख़ोफ़ बेख़बर चाहे हो कोई भी जाती,

ऐसी है मेरी मोदी की अनोखी मनोवृति ,जिसके समक्ष  दुश्मन की निश्चित है शति,

अक्षुण्ण बुने हैं जिसने  भारत हित के खवाब 

हर परिवेश में दुश्मनों के सवालों का मुँह तोड़ दिया जवाब ,

मानो दिव्या शक्ति हो उसको अर्जित 

हर सहचर को अपना बना लेता मंच पर होकर मुखरित ,

अब हो गया आश्वासन परिवर्तित होगा भारत हमारा

हर दिल मे जागेगा मोदी के ख्वाब का उजियारा,

उस मोदी की हूँ मैं भक्त उसका करती हूँ गुणगान  

जो लड़ रहा है देश के अत्तताईयों से और कर रहा है सबका परित्रiण  …. |

 66.

ए खुदा के बंदे तू उनको क्यू देखता है 

जो तुझे गिरता देख खुश होते हैं

देख उनको जो तेरी हर एक हँसी पर मरते हैं

हो सकता है की जीने की वज़ह ना हो तेरे पास

पर कोई हो जो तुझे ही  देख  जीने को तरसते हैं…….

67

सुकून के साथ 

होता है किसका एहसास ?

विचार करो………….

कि जिसके पीछे भागते भागते जीवन कर रहे हैं व्यर्थ ?

या उसका जो हमारे पास है पर हम उसे देते नहीं अर्थ ?

68

मुसाफिर से पूछा 

तुझे कहाँ जाना है,

वो मुस्कुराकर बोला

ए राह दिखाने वाले सहचर ,

मैं तो निकला हूँ 

खोज मैं उसकी ,

जिसका नहीं मिला आज तक किसी को ठिकाना 

यदि तेरे पास हो तो देदे मुझे वो ख़ज़ाना….

69

ए खुदा बता 

रस्तो को मंज़िलों से मिला ,

तेरे दीदार को निकला हूँ मैं 

छोड़ कर ये जहाँ,

भटक रहा हूँ चारो ओर 

पर ये कदम ना रुकेंगे क्युकि

बँधी है प्रीत की डोर ,

भक्ति की तेरी चडी है ऐसी तड़प

कि मजबूर कर दूँगा तुझे

दर्शाने को तेरी छवी की झलक …….

70

झौंके हवा के कुछ कहते हैं हमें 

संग लाई हूँ तेरे लिए कुछ लम्हें,

खुवाबों में भर ले इन्हे समेट ले ए वीर

माँ ने तेरी याद मैं फिर बनाई है खीर,

हूँ मैं सबके इर्द गिर्द 

पर पैगाम लाती हूँ केवल तुम्हारा ,

क्युकि औरो के लिए हूँ समीर 

पर तुम्हारे लिया प्रेम की द्वा मेरे वीर,

जाने क्यूँ सुनाई देती है

तुम्हारे मन की आवाज़ 

जो बार बार लाती है मुझे तुम्हारे पास,

इसलिए ए वीर

बन कर आती हूँ तेरे दर पर फ़कीर

इन लम्हों को लेकर भर दे मेरी भी झोली ना बहा नीर 

माँ ने तुझे याद कर फिर बनाई है खीर ……..

71

एक भारत श्रेष्ट भारत 

देश नहीं मिटने देंगें 

देश नहीं झुकने देंगें ,

हमारा भारत महान 

केरेगा उत्थान ,

जिसके लिए हम सब मिलकर करेंगें काम

बनाएँगे नई पहचान ,

ह्म देश के नागरिक नहीं 

देश के सेवक हैं,

अंधेरे मैं उम्मीद नहीं

अंधेरे मैं दीपक हैं,

आज यहाँ आप सब के समक्ष 

अपना विश्वास देने और आपका लेने आया हूँ,

क्युकि हम ही कल का गौरव हैं 

जिनके हाथों मैं देश की शौहरत हैं,

इसलिए दोस्तों

बच्चे हो या युवा

मुझे आप सब का साथ चाहिए 

देश मैं बदलाव चाहिए ,

नारी का सम्मान और सज्जन की ज़ुबान चाहिए,

देश का हर नागरिक बलवान चाहिए

अब मौहलत मैं दूँगा नहीं

मुझे केवल इंसाफ़ चाहिए

मैं आपसे पूछ नही रहा

मुझे केवल जवाब चाहिए,

क्युकि मिल जाएँ हम 

हॉंसले बन जाएँ  बुलंध,

फिर ज़ालिमों से जुर्म का हिसाब चाहिए

हर हाल मैं सच ये खुवाब चाहिए

हर हाल मैं देश मैं बदलाव चाहिए…

धन्यवाद

72.

वो पल मैं भूल नहीं पाता हूँ

जब ये कदम ज़मीं पर रखता था,

मुश्किलों से गुज़रता , पर फिर भी पार हो निकलता था,

दिखते कदम हमारे थे 

पर क्या पाता था हमें 

गोद में हम तुम्हारे थे,

ऐसी है मेरे गुरु की प्रेम की डोरी

जो हर पल मुझे सरहाती है प्रेम से चोरी चोरी,

जिनके लिए कोई छोटा बड़ा या जात पात नही

बस अपने भक्त की खुशहाली मैं ही लीन रहते हैं हर पल

जिसमे होती गुरु के लिए कभी रात नही…

73.

विषय मिले मुझे कोई भी

मन मेरा सदा अचल रहे,

सवाल चाहे हो केसा भी 

समाधान उसका ज़रूर मिले,

कभी ना घबराउँ कभी ना डगमगाउँ

कदम रखूँ चाहे काटो पर ,

मुस्कान मेरी बनी रहे

बस मेरा देश मुझ पर गर्व करें 

ऐसे मेरे कर्म रहे ,

खुवाब है मेरा 

स्वर्ग बने भारत

स्वदेश प्रेम कण कण मैं बसे,

ऐसा कुछ अनोखा कर जाउँ

ताकि इत्हास मैं मेरा नाम रचे…..

मेरा देश

मेरी जान

मेरी जान

तुझ पर कुर्बान….

74.

जिसे तराश्ते रहे अपना बनाने के लिए ज़िंदगी भर 

क्या पता था वो एक दिन हमारी ही लेगा ख़बर,

समझ नही पाए हम क्या था ये खेल

और ना ही रख पाए सबर,

क्युकि हालात के ही हाथों ठोकर खाई थी

अपनो से ही मिली जुदाई थी,

जिसके लिए हमने हर चीज़ ठुकराई थी

उस ही ने हमारी इज़्ज़त सरे बाज़ार लुटवाई थी,

आज किनारा मिला भी तो लगता कि भंवर मैं फँस गए

जिस घर को खुद प्रेम की ईंटों से सींचा था उस मैं उस ही के साथ धँस गए…….

75.

सोचा एक दिन जी कर देखें तेरे बिन

पर क्या बताउँ केसे था काटा,

जहाँ तक नज़रें थीं 

वहाँ तक था सन्नाटा ,

हर चीज़ अपनी जगह पर ही थीं

पर उजाले मे कमी थी,

प्रतिदिन की भाँती निरंतर चल रहा था सब

पर इल्म ना हुआ

कि कब दिन शुरू और ख़तम हुआ कब,

कुछ ही घंटे काफ़ी रहे सब समझने के लिए

हर चीज़ को प्रेम चाहिए ज़िंदा रखने के लिए…….

76.

मेरी गुहार

खुली हवा मैं साँस लेता हूँ

फिर क्यूँ धुआँ दिखता है

ज़मीन पर खड़ा हूँ

पर कुआँ दिखता है,

रास्तों पर चलता हूँ

तो लगता है 

फिसलता हूँ,

काँटे चुभते हैं पैरों में 

पर चप्पल मैं सुराक नहीं दिखता हैं,

हर चीज़ है मौजूद 

पर जाने क्यूँ नहीं है कोई वजूद ,

जेब मे हैं पैसे खरचने को

पर बाज़ार में कुछ नहीं बिकता है,

क्यूँ है ये घोर अंधकार 

जो भींच रहा है मुझे लगातार,

दृष्टि है पर दिख नहीं रहा

क्या कोई सुन भी नही रहा मेरी गुहार?

77.

प्रायश्चित एक अनुभव

एक बात रखना याद

ना करो शॅमा की फरियाद,

वे तो केवल शब्दो का खेल है                                                                                

जिसमे ना होता दिलो का मेल है, 

क्योंकि कोई कभी कुछ नही भूलता 

ये एक ऐसा तराज़ू है जिसमे इंसान हर पल है झूलता,

फिर मौका मिलने पर मन मे भरी कड़वाहट संग..

अगला पिछला सब कबूलता,

इसलिए शॅमा ही क्यों माँगो…कुछ माँगना ही है तो 

सद्बुद्धि और शक्ति माँगो

जिसके संग व्यवहार को बांधो,  

स्वयं ही स्वयं की भूल को तराशो और करो प्रायश्चित

केवल ऐसे ही शांत कर सकते है हम हतोत्साहित चित,

किसी के फैसले का क्यों करें इंतेज़ार

अपने मन की आवाज़ की सुनो पुकार,

फिर लो ऐसा संकल्प

भूल ना दोहराएँ कभी,

अपने आचरण के बलबूते पर

फिर जगह बनपाएँ वहीं, 

क्योंकि सपने पूरे हो ना हो

प्रायश्चित  नही रहना चाहिए अधूरा,

ताकि लोग तुम्हारी याद मे कह सके

श्वेत था इसका मन

समझा हमने भूरा .. |

78.

बेगुनाह बच्चें बने बेज़ुँबा    (आतंकवादी हमलों  मैं मारे गए बेगुनाह बच्चों को समर्पित )

माँ हमारी हर आवाज़ सुनती थीं

हमारे लिए अनगिनत सपनो को बुनती थीं, 

सब सपने चकना चूर हो गए    

ज़ालिमो के हाथो मरने पर हम मजबूर हो गए, 

अब पिता के कंधों पर हमारी अरथी थी

माँ हर आहट से डरती थी,

क्योंकि पालती थी वो जिसे बड़े नज़ो से

खिलती थी जिसे अपने हाथो से,

आज उसे ही कफ़न पहनाया था 

मिट्‍टी में दफ़न कराया था, 

अब माँ की आँखों में केवल नीर हैं  

ज़ालिमो ने घोंपे छाती में ऐसे तीर हैं ,

इन ज़ख़्मो को माँ कभी भर नही पाएगी 

इस पीड़ा को सहते सहते शायद एक दिन मर ही जाएगी,

जाने हम बच्चो ने ऐसा कौन सा किया था गुनाह

जो माँ के आँचल को छोड़ इस तरह हुए फनाह, 

रुंह भी रो रही है आज माँ बाबा की

अपने कलेजे के टुकड़ो को जो गवाया था 

पल में मकान बन गया शमशान  

क्योंकि हर लम्हे को बेबसी की आग में ज़ालिमों ने जलाया था,

अब माँ की याद हमें कब्र में भी तड़पाती है

क्योंकि वो हमे याद कर सारा दिन लोरी गाती है….. |

79.

कलम सब कहती है
वो जो दिल में है जुबाँ पर नहीं
सुनाती है लिख कर दास्तान वही,
थे हम बेखबर
अनगिनत
सवालों के लिए दिल में भँवर,
नसीब से लगी जब कलम हाथ
मानो
मिल गया वो जिसमें खुदा का है वास,
फिर क्या था
स्याही से भरी थी मेरी कलम
बारिश में नहा कर घुल गए हम,
मन में उठी हज़ारों तरंग
ऐसे निकले इस राह पर
कि फिर रुके नहीं कदम,
हर साँस बोली
मिल गई हमजोली
अब निकलेगी जहाँ में
हमारे भी अरमानों की टोली।

80.

कितना दर्द है तेरी आँखों में

जिसे देख कर भी हम अनदेखा कर देते हैं,

इस बनावटी दुनिया में जीने के लिए

तेरे घाव को हम झूठी मल्हम से भर देते हैं,

घाव तेरे सूख जातें होंगे पर मिट ते नहीं

ख़ुदग़रज़ो की इस दुनिया में 

फिर उभर जाते होंगे पर वो उनको दिखते नहीं

यही तो खेल है असल ज़िंदगी का

की जिनके लिए मिट कर भी हम मिट ते नहीं

उनके एहम के आगे कितना भी झुक जाएँ

पर हम उनको कभी दिखते नहीं………….