521.
खूबसूरत शब्द कलम के ज़रिए हर कोई उतार सकता है
मगर वो केवल दोस्त ही होते हैं
जो भई वाह कह कर
हमारी शायरी को निखार सकता है………..
522.
हर मज़ार पर घर तेरा ही है
हर दुआ में ज़िक्र तेरा ही है ,
तू है इसलिए उमीद है
फिर भी सांसो को इंतेज़ार तेरा ही है,
तू उस सत्य में है
जिसकी कोई परिभाषा नही
तू उस होनी में है
जिसकी किसी को आशा नही,
तू ईमानदारी की उस रोटी में है
जिस पर हमारी नज़र नही,
तू वक़्त के उस सबर मे है
जिसकी किसी को खबर नही,
तू निरंतर चलने वाले मुसाफिर के होसलें में है
हम पूजते उन पत्थरों में नही,
तू मासूम की मासूमियत में है
तू आसू के खारे पन में है
तू पशु-पक्षी की ईमानदारी में है
पूजा करने वाले पूजरी में नही……
तेरा अस्क कण-कण में है
हम जिसमे ढूंड ते हैं
बस उस ही में मिलता नही…….
523.
कोशिश करने वालों के लिए
ज़िंदगी में कभी- कमी नही होती………
उनके लिए धरती भी कभी थमी नही होती………..
कोशिश करने वालों के खुवाबों में
कभी नमी नही होती
क्योकि उनकी सोच कभी जमी नही होती………..
कोशिश करने वालों के होसले इस कदर बुलंद होते हैं
यही कारण है
एसे अजूबे चंद होते हैं
और हम उनके पद चिन्हों के संग होते हैं……….
524.
सीमा पर बैठे देश के जवानो को
भारत के अनमोल रतन
जो छू गए आसमानो को,
और जो हर पल तान के बैठे रहते हैं
बुध्धि और बल से अपनी कमानो को,
उन सभी को सम्मान
सभी को गणतंत्र दिवस का सलाम !!!
525.
रिश्ते तोड़ कर जीतेजी
वो पहुँचा देता है शमशान
फिर मैईयत पर पहुँच कर
कौन सा रिश्ता निभाता है इंसान………
526.
हम देख रहे हैं
कि हम खुद को मिटा रहे हैं
फिर भी हम सत्य से नज़रे चुरा रहे हैं ….
527.
तुम्हें कहती हो…कोई हक़ नही है
मैं फिर भी माँग लेता हूँ
कोई अपनापन है
जो मैं ठुकराए जाने पर भी
तुम्हें थाम लेता हूँ,
रोज़ रात भीगी पॅल्को के
तुम्हीं आँसू पोंछती हो
कैसे यकीं दिलवाओं अंधकार में खो जाने से
तुम्हीं रोकती हो,
रूह एक हो चुकी है हमारी
तुम फिर भी महोब्बत को नफ़रत की आग में जलाती हो
जिस झूटे ज़माने की तुम्हे परवाह है
तुम उसके डर से सच्ची महोब्बत को स्वीकारने से घबराती हो…..
पर तुम भी याद रखना
जिस रूह के हम साथी हैं
उसमे तुम्हारा अक्स खुद समाएगा
तुम्हे अपना बनाए बिना
ये आशिक कहीं नही जाएगा………….
528.
जल भी रहे है
जला भी रहे हैं
रो भी रहे हैं
रुला भी रहें हैं,
जीना है
पर जीने नही देना है
मरना चाहते नही……….
पर ज़िंदगी को मार देना है….
529.
कदम कभी भी मजधार में नही फँसते
फँसते हैं हमारे विचार………
इसलिए विजय विचारो पर पाओ
निश्चय को साधो…
कदम करलेंगे हर भंवर को पार……..
530.
तुम अमर हो
माँ बाबा का सबर हो
तिरंगे से लिपटे हो
इसलिए हर पल दिखते हो
तुम्हारा कतरा कतरा
देश पर कुर्बान है
हमारी हर साँस करती
तुमको सलाम है
जय हिंद
531.
मन की सुन
गाता रहा अपनी धुन,
ज़माने के लिए बुरा
पर मैं था मगन,
वक़्त से यही सीखा मैने
अब क्या ज़रूरी था
दूसरों को खुश करना
अब ना मंज़ूरी था……….
532.
तुम्हे दिल्लगी मेरी
भुलानी पड़ेगी………..
मैं जा रहा हूँ
यादें पुरानी मिलेंगी……………
साथ मेरा ना सही
निशानी मिलेगी……….
वक़्त की भीड़ में आँखें
नामामी मिलेगी……
तुम्हे दिल्लगी मेरी
भुलानी पड़ेगी………..
मैं जा रहा हूँ
यादें पुरानी मिलेंगी……………
महोब्बत की कलियाँ
फिर ना खिलेंगी….
मैं रूह हूँ तेरी …….बस अब नज़र ना मिलेगी…………..
तुम्हे दिल्लगी मेरी
भुलानी पड़ेगी………..
मैं जा रहा हूँ
यादें पुरानी मिलेंगी……………
शिखर पर महोब्बत की
सलामी मिलेगी………….
छोड़ जाउँगा मैं एसी….कहानी मिलेगी
तुम्हे दिल्लगी मेरी
भुलानी पड़ेगी………..
मैं जा रहा हूँ
यादें पुरानी मिलेंगी……………
533.
ये वो दर्द है
जिसकी कोई दवा नही………….
ये वो क़र्ज़ है
जिसकी हमें हवा नही………………
ये वो आवाज़ है
जो उठी पर कोई सुनता नही
ये वो दुनिया है
जिसकी कुद्रट भी अब गवाह नही…………
Sonalinirmit
- नसीब से मिले
महोब्बत से भरे
वो हमे अपने दिल में बसा कर बैठे हैं
अब समझे हम
इतने खुश कैसे रहते हैं
एक खुदा
दुआ करता तुझसे ये दोस्तों का दीवाना
कि मकबरा हो या आशियाना
मैं रहूं वहीं
जहाँ मेरे दोस्तों का ठिकाना
535.
सुख की कामना सब करे
तपस्या ना करे कोई,
दान भी करें दिखावे को
तो सुख का बीज कहाँ बॉई ,
सूर्य निकले हर सुबह
हम पूजे पत्थर सुबह होई
चंद्रमा दे जब शीतलता
तब जग सारा सोई…….
हे मनुष्य
फिर तू क्यों रोई
536.
कोई पूजे राम
पूजे कोई रहीम
सब चाहें नीला आसमाँ
पर बाँटनी सबको ज़मीन………
कोई बुलाए खुद को शाम
कोई बुलाए सिकंदर
गुरु एक सा बैठा भीतर सबके
पर झाँके कौन अंदर
फेरी में तीरथ स्थानो की
सब ढूँढे वो मस्त कलंदर
पर कैसे हो दर्शन उस स्वरूप के
जब मन में हो लालच का समुंदर…..
537.
माँ का आँचल खून से भरा है
पिता अधमरा खड़ा है
शरीर के अंग भी पुत्र के जोड़ नही पाया
जिसने तिरंगे के सम्मान से स्वॅम को अमर करवाया,
शोक में डूबा है सारा देश जायज़ है……
पर अब और बर्दाश्त करना बिल्कुल नाजायज़ ………..
जय हिंद
जय जवान
538.
वो नारी ही क्या
जिसे आवाज़ उठानी पड़े,
नारी तो वो है
जो जब ठान ले
तभी आगे बढ़े…….
539.
गुज़र रहे थे
जब हम अंजान गलियों से
हर जगह मेहकमा अपना ही नज़र आया ……
समझ ना पाए हम इस रहस्य को दो पल
फिर गौर फरमाया तो जाना
सबका दिल किसी अपने ने था ठुकराया
540.
हमने बहुतों को अपने दिल मे अपना बना बिठाया
बहुत खुशी भी मिली
पर जब किसी और ने हमे अपने दिल में बिठाया
सच कहूँ तो..
ज़िंदगी हमारी तभ खिली……….
सच कहा है किसी ने
तुम किसी को चाहो
कोई बड़ी बात नही…
कोई तुम्हे चाहे
ये बड़ी बात है…….