321.
वो मिलेंगे तो चेहरे पर
गम ना मिलेगा
गर दिल में झाँक लिया उन्होनें तो
गम कम ना मिलेगा …………….
322.
दूरियाँ इतनी बढ़ा दी तुमने
कि आज तुम्हारे वापिस मिलने पर खुशी का वो एहसास नही
जीना तुम्हारे बिना सिखादिया तुमने मुझे
अब तुम्हारी कमी का वो आभास नही ,
बस गुज़ारिश है इतनी
कि ना बिगड़े रिश्ते फिरसे
नज़दीकियाँ ऐसी बनाए रखना
जॅग हॅसायी ना हो हमारे रिश्तों की
दिल मे प्रेम इतना बनाए रखना …………
323.
इतनी सी बात थी
काश पहले ही स्वीकार ली होती
जो बीत गई अब तक
आसानी से गुज़ार ली होती
कि ………..
रोटी अपनी भूक की
नमक स्वाद अनुसार ही खाया जाता है
रिश्ता विश्वास की बुनियाद पर ही निभाया जाता है,
हम किसी से भी जुदा नही हो सकते
जब तक मन ना चाहता है
और जिस दिन मन जुदा हो गए
उस दिन जीत कर भी इंसान हार जाता है …………….
किसी ने क्या खूब कहा है
बात कितनी भी हो
इतनी मत खीचों ….क़ी फसलें कम ना हो पाएँ
जिन के बिना जीना ही नही
तो उनसे बेरूख़ी के फासलें इतने क्यों भड़ाए………
324.
मैने एक बात आज जान ली है
इसलिए ज़िंदगी ने मुझे सबकुछ देने की ठान ली है
कि नज़रिए की परख ,
मैने पहचान ली है
कि अच्छाई ही ढूँढनी है वक़्त के हर पड़ाव में
ज़िंदगी खूबसूरत ही दिखेगी
मैने ये बात मान ली है ……
325.
रोज़ रोज़ हैवनगी बढ़ती जा रही है
दुनियाँ बस उन्हें अख़बारों में पढ़ती जा रही है ,
कब -कौन कहाँ- कैसे- कोई कदम उठाएगा
जाने ये हैवानगी का सिलसिला कब रुक पाएगा ,
ये …….बेटियाँ कब सुरक्षित होंगी???
कब कोई इस मुद्दे पर ज़माने की ईंट से ईंट बज़ाएगा?
ये बेटियाँ कब सुरक्षित होंगी ???
जाने वो वक़्त कब आएगा…………….
326.
नाचे मेरे खुवाब
झूमे कदम,
चाहे हैं ज़ामी पर
या नींद में हम ,
एक नशा है
तुझमे एक अदा है
जीने का संग तेरे अपना…… अलग ही मज़ा है,
छल कपट की दुनिया से दूर हैं
आँखों में हर पल एक नूर है
जो जीने की कला का …….हर पल नया पहलू सिखाता है…………..
आसमाँ को छूने की चाह को और भी बढ़ता है …………
रोज़ – रोज़ सीख रहा हूँ तुझसे ए ज़िंदगी
जो तूने मेरे हाथ ना थामा होता तो
आज में भी ज़माने की भीड़ में खो गया होता कहीं ……..
Sonalinirmit
327.
सुकून ही तो माँगा था तुझसे
ए ज़िंदगी………
तूने तो बदले में मुझसे मेरी खुवाहिशे ही माँगा ली………..
328.
मझधार मे सिमट के रह गए मेरे सवाल
किस राह को पॅक्डू नही पता मुझे…….
जाने क्यों मंज़िल नाराज़ है मुझसे
कहती है मोड़ तू अब खुद चुन ले चुनले …………
329.
ना सुकून है
दिल महरूम है,
बस तेरे दर पर जब भी आता हूँ
दिल में उछलता एक जुनून है
जो कहता है मुझसे
तू चल
खुद को मत छल……….
ज़िंदगी खूबसूरत है
रहे ज़रूर मिलेंगी आज नही तो कल
बस तू चल………………..
330.
उन रिश्तों की कसौटी से मैं रोज़ गिर कर उभरता हूँ
जिनको मैने प्रेम के धागे से सिया था
जिनके साथ में दिल से जिया था ……..
एक वो वक़्त था जब चेहरा मेरा था
और चमक थी उनकी
आज ना वो चेहरा है
ना वो चमक ,
बस उनका एहसास है
जो दिल के पास है ,
वरना उनके बिना तो लगता है वक़्त ही खराब है ……….
331.
पता ही नही चला
कब आँसुओं से प्यार हो गया
जो पोछते ते
उनसे रिश्तों के बदले आँसुओं का व्यापार हो गया ………………
332.
खुवहिशे रूह से लिप्टी थी
आसमाँ को छूने की चाह में
आत्मबल से लिपटे थे कदम
ना रुके चाहे हो जो राह में,
मंज़िलों से चैन की रहें मुझे खींच ती थी
जब भी दो कदम रुकता था
मेरी सांसो को भींचती थी ,
ये जुनून मुझे आज कहाँ ले आया है
सपनें मे भी नही जो खुवाब देखा था
वो सच कर दिखलाया है
333.
मुस्कुराकर स्वीकारों दो हज़ार अठ्ठरा
दोस्तों
ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा ……….
जो करना है उसे आज ही कर लो
मंज़िलों को ज़रूर मिलेगा किनारा
दोस्तों
ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा …….
यक़ीन करो खुद पर
दिल से करो अपने प्रभु का जयकारा
दोस्तों ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा ….
नव वर्ष 2018 की हार्दिक शुभ-कामनाएँ
sonalinirmit.com
334.
ज़िंदगी की खूब्सुसुरती में कोई जाना- पहचाना सा राज़ है
नज़र आज़ाएगा अगर मान लो
जो है वो आज है
sonalinirmit.com
335.
पहचान बनाने की खुवाहिश में निकला था
गुमनाम हो गया
सुबह का सूरज बन चमकना चाहता था
अमावस का चाँद हो गया ….
336.
वक़्त का तमाशा है
कैसा करतब दिखता है ……
जिसके बिना कभी कल बीता नही
उसका आज ज़िंदगी में वजूद नही,
कल जो धुन मैं गुनगुनता था
आज उससे दूर भागता हूँ,
जिस खुदा को मैं कल मानता नही था
आज सिर्फ़ उस ही को जनता हूँ…..
337,
काश इन मौत के थानेदारों को कोई
रिशवत लेना सिखा देता …..
हमारी ज़िंदगी कुछ आसाँ हो जाती
अपनो से ठुकराए जाने के बाद
कम से कम मौत तो अपनी हो जाती ….
338.
सुख की चाह
करदो प्रवाह
हो जाएगा
सुकून से निकाह …
sonalinirmit.com
339.
दोस्तों को शान में
कुछ कहना चाहती हूँ
तुम्हारा साथ है
तो मैं जीना चाहती हूँ ,
लगता है ज़िंदगी खूबसूरत थी
तुम्हारे बिना भी
पर उस खूबसूरती का एहसास
मैं तुम्हारे वजूद से ही पाती हूँ ,
सब कुछ वही था
कुछ बदला भी नही था
पर चाहिए थी जो खिलखिलाती हुई शामे
वो तुम्हारे साथ ही सजाती हूँ ,
ये तो कुछ भी नही दोस्तों
मैं तुम्हारी शान में बहुत कुछ कहना चाहती हूँ …
340
मैं फिर भी ज़िंदा हूँ
मौत से मिलकर किसी को मार देना, फिर भी आसान है
जीते जी किसी के ज़मीर को मार कर, उसे ज़िंदा रहने पर मजबूर कर देना
क्या कहूँ ……. मैं……क्या कहूँ
वो एक लाश है
हर जगह है शमशान
जिस्म तो ज़िंदा है
पर मर गया भीतर बैठा इंसान,
देखती है वो हर ओर
नज़र आता है अंधेरा
उसके जीवन में वो रात रह जाती है
जिसका नही हो पाता कोई सवेरा,
जीती है फिर भी वो
क्योंकि साँसों का हिसाब पूरा हुआ नही
मर कर उसने इंसाफ़ पाया तो क्या
जो ज़िंदा रह कर, जीया ही नही…………….
मैं फिर भी ज़िंदा हूँ
धन्यवाद