461.
हमने लाबो से गुज़ारिश की थी
खामोश रहना
आँखों से कहना भूल गए
तुम बारिश ना करना …..
462.
सुख की चाह थी
सुकून की राह थी
पर दोनो ही रास नही आए
जानते हो क्यों
क्योकि मैने कदम उनके विपरीत चलाए
463.
दर्द की दवा केवल वक़्त के पास है
और वक़्त अब हमारे पास है नही
इसलिए
काट लो
या बांट लो
मर्ज़ी है तुम्हारी…………….
464.
देश विदेश घूम आया
सारे वेश पहन आया,
पर मन की आवाज़
मात्र भाषा से ही निकलती है
जो हमे सीखनी नही पड़ती
वो माँ की कोक से ….. विरासत में मिलती है
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ
465.
युहीन नही होंठों पर
तेरा नाम लेने से तर जाता हूँ ,
तुझे अपनी ज़िंदगी का बादशाह कहता
तेरी आँखों मे खुद की तस्वीर देख
निखार पाता हूँ,
खुदा को नही देखा
पर तुझसे ज़्यादा क्या चाहेगा मुझे
कह पाता हूँ,
मैं फिसलूं या उड़ूँ
दोनो की मंज़िल में
तेरा साथ ही पाता हूँ ………..
466.
पत्थरों से बात की
तो उनके मॅन की बात समझ आई थी
वो मारना नही चाहते थे हमे
बस तेज़ हवा के कारण
हमें चोट पहुँचाई थी,
वो कहते हैं
धूप में रह कर
पैरो तले रुंध कर
हमने पत्थरों की जात बनाई थी,
वरना हम भी मिट्टी ही थे जनाब
बस हमने भी करमो की चोट खाई थी………….
467,
कहावत थी पुरानी
आज मान गए
जीत आए किले
जब ठानी
पर अपनो के आगे
हार गए……
468,
एक समारोह के समान बन गई है ज़िंदगी
लोग आते हैं
मज़े उठाते हैं
और चले जाते हैं
नज़ाने हम कुछ कह कर क्यों नही पाते हैं ………….
469.
कंधे तो बहुत मिले राहों में
हमने सोचा
वक़्त आने पर सिर रख दो आँसू बहा देंगे
हमे ना पता था
वे हमारा जनाज़ा उठाने को बैठे थे ………..
470,
भीतर छुपे आनंद की
संसार में खोज है
यक़ीनन …..
ज़िंदगी इसलिए भोझ है …
470.
घमंड तो इंसान को सांसो को भी नही करना चाहिए
पैसा तो चीज़ ही क्या है …………..
471.
सवाल उठाते लोग
जो पहले नही सोचा वो अब क्यों
जवाब देता मुसाफिर
तब मे गुमराह था
मेरे आज में मैं हूँ
472
उड़ने वाली मैं आँधी नही
थम जाए जो मैं वो लम्हा नही
निरंतर चलती रहती हूँ क्योकि मैं फ़ितरत की मारी हूँ
मैं आज के दौर की नारी हूँ
मैं भुजे दीपक की कोसी भाप हूँ
मैं अपने ही नृत्य की थाप हूँ
मुझे अपने बिटिया होने पर गर्व है
बेटी को जन्म दे ……
मुझे मिला स्वर्ग है
473.
किस भीड़ का आज हिस्सा हूँ
मुझे एहसास नही
मेरे कदम चल ज़रूर रहें हैं
मगर मज़िलों पर अब विश्वास नही……………
474.
अब समझ आया जंग और लड़ाई में फ़र्क क्या होता है
जंग खुद से होती है
और लड़ाई अपनो से……
शायद इसलिए
मैं जंग तो जीत आया
पर लड़ाई में हार गया …………..
475
नवरत्रों में पूजा भले ही ना करें
पर करें हर साँस मे नारी का सम्मान,
कलयुग में उस युग को फिर लेकर आएँ
जहाँ माँ के आशीर्वाद पर इतरता था इंसान,
पूजे नौ देवी
या सिर्फ़ नारी का रखे मान….
बात छोटी है
पर सच्ची है
पत्थर की मूर्ति को छोड़
माँ के दिल में झाँक कर देखो
माँ बहुत रोती है
ख़ौफ़ में हर बच्ची है……….
नवत्रो की हार्दिक शुभ कामनाएँ
Sonalinirmit
476
हर साँस मे मन के शब्दों को उतार मैं खुद को पूर्ण पाता हूँ
वरना कुछ भी करलूँ
दुनिया की भीड़ में खुद को अधूरा ही पाता हूँ ….
478.
हर साल उस रावन को क्या मारते हो
जो मर कर आज भी ज़िंदा है
जिसने माँ सीता का हरण भले ही किया
परंतु उनकी इच्छा की विरुध उन्हें
कभी हाथ नही लगाया
परिणाम! पाप का अंत
तो हम आज भी बार बार उस ही रावन को क्यों मारे
यदि मारना ही है , तो आज के उस रावन को मारो
जो सीता हरण तो करता ही है
और उसे दरिंदे की तरह नोच नोच कर मार डालता है
या अधमरी हालत में ज़िंदा मरने के लिए छोड़
खुद वो जानवर दूसरे शिकार की तलाश में आज़ाद घूमता है………
विजयदशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ
479.
दुआओं में किसी अपने की घेहरा असर है
जान नही मुझमें
मगर…..साँसे बेख़बर है….
हर पल टूट रहा हूँ
जाने कैसे सब्र है,
दिल की कुछ खुवाहिशे बाकी हैं
शायद जुड़ा उन्हीं से
ये सफ़र है,
होना है जो वो होगा ही
बस मन सब कह पा रहा है
इसलिए ज़िंदगी ज़फ़र है…………….
480.
प्रकृति की रूह उदास है
हर साँस मे प्रदूषण का वास है……..