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HELLO EVERYONE I AM SONALI…..WRITING MAKE ME STROGER EVERYDAY………HOPE YOU ENJOY THE EXPERIENCE OF MY POETRY.THANK YOU

एक सवाल

आज वो मुझसे कह रही थी

उसकी आवाज़ में पीड़ा बहुत गहरी थी,

उसने मुझसे किया एक सवाल

माँग में जो मेरे सिंदूर है

उसका रंग क्यों है लाल,

किस बात का ये प्रतीक है

जब की रिश्ते कहीं गुम है

केवल तनहाईयाँ ही नज़दीक है,

आख़िर किसके साथ हुआ था मेरा ब्या

सिंदूर में मिले लाल रंग के साथ

या फिर मंडप में खाई गई उन कसमों के पीछे छिपे भ्रम के साथ,

कि मैं भी किसी की धुलन बन इतराउंगी

अपने पति प्रेम संग जीवन बिताउंगी,

कुछ ही पल लगा

सब समझ आ गया,

किस्मत का खेल

सारे रंग दिखला गया,

क्योंकि

जिन्होने मुझे जन्म दिया

उन्होने मुझे दान दे दिया,

जिन्होने मुझे दान में दिया

उन्होने मेरा मान ना किया,

वे कहते रहे

परवरिश में मेरी कमी है

माँ बाबा कहते थे

उनके हिसाब से चलो

अब ज़िंदगी तुम्हारी वहीं थमीं है,

मेरा फिर एक सवाल

अगर मुझे इस ही तरह करवट बदलनी थी

तो मुझे बचपन में ही ससुराल विदा कर देना था

मुझे पालने का फ़र्ज़ उन ही को देदेना था,

शायद इस तरह मेरी ज़िंदगी कुछ आसां हो जाती

दो परिवरो के बजाए मैं ज़िंदगी भर , भर एक का ही उठाती

माँ बाबा ने अपनी खुशी के लिए मुझे पाला

फिर ज़माने की रीत को अदा करने के लिए मुझे घर से निकाला,

मेरा अपना तो कोई घर ही नही

ना ही कोई वजूद

बस ये बतलाना गए  भूल

जिसके साथ मेरे सपने गए उस पालकी में झूल,

मैं ज़िंदगी को कुछ समझ ती थी वो कुछ निकली

मैं जिस गर्व से एक से दूसरे के घर चली थी

उस गर्व की नीव खोक्ली निकली,

 थम गई थी मैं यह सब सुनकर

मेरे पास ना था कोई जवाब

और

उसके पास बहुत थे सवाल

आज प्राइड ऑफ इंडिया के इस मंच पर

अपनी कलम के ज़रिए मैं आपसे पूछती हूँ

शायद आपके पास इसका कोई हल हो

ताकि हमारी बहनों का भी एक सुनेहरा कल हो,

दोस्तों

ये कहानी उन लड़कियों की है

जो अब तक खुद को भूज रही है,

बेबुनियादी तकलीफ़ों से झूझ रही है,

दुख की बात यह है कि हम

इस बदलते दौर में

कब तक इन बातों को धौहाराएँगे

आख़िर लड़की को उसका पूर्ण मान कब दे पाएँगे,

क्यों वो पल पल कुचली जाती है

कभी इज़्ज़त लूट कर

तो कभी पैदा होते ही गला घोंट कर,

कभी उससे उसकी पेन्सिल कपि छीन कर

तो कभी उसके अरमानों को तोड़ कर,

जिसकी कोक से जन्म लेकर हम दुनिया देखते हैं

उसे सारे बाज़ार नंगा बेचते हैं,

आप सब से मेरी बिन्नती है

बस आप हमे हमारा मान देदे

औरत को उसका सम्मान देदे……

धन्यवाद

सोनाली सिंघल

आँखें हर पल भीगी थी

कैसी वक़्त की उलझन है 
लाल रंग से बनी दुल्हन है ,
ठिकाना मिल रहा है 
पर जीने का बहाना नही ,
शहनाईयाँ बज रहीं है 
पर होंठों पर तराना नही,

वो सोचती है 
खिलोने ही तो माँगे थे
चौके पर बिठा दिया 
गुड्डा माँगा था
दूल्हा दिखा दिया ……………

पियासी ही तड़पती रही
की कहीं पानी माँगा तो……समुंदर ना दिखा दें 
इस छोटी सी उम्र में ……….अब मुझे माँ ना बनवा दें ,
ये सब अब और क्या समझ पाती
मैं तो अभी तक ठीक से चलना भी नही सीखी थी 
रोते रहने का अर्थ भी नही समझ पाई 
क्योंकि आँखें ही मेरी हर पल भीगी थी ……
आँसू थे जिनके करंण 
वो मेरे सगे थे 
जिन्होने पौंछ ने थे वो अब तक नही जगे थे ,

मुझे ज़िंदगी को जागीर समझ पहुँचा दिया गया था वहाँ 
जहाँ मेरी मर्ज़ी बिना बसाया गया मेरा डेरा था 
उस चुनरी को ऑड कर 
जिसके भीतर सिर्फ़ और सिर्फ़ अंधेरा था ………………