CORONA LESSON

ANUBHAV

शहर सूने हो गए

दोपहर काली हो गई..

ये तेरे मेरे बच्चन की किताब

जाने कैसे खाली हो गई..

नाराजगी में ना निकाल
तिल भर वक्त भी
क्या पता उसका साथ कल हो…
या हो ..ही नहीं..
कर्म की रेखा को
किसी ने ना देखा
फिर भी कहते हैं..
कर्मों का ही है सारा लेखा..
दर्द छिपाया छिप गया…
खुशी दबाई दब गई…
ए वक्त बता और कौनसा हुनर दिखाऊं
कि आज के इस दौर से बता …
कैसे पुराने दौर में जाऊं …
अब तू स्वॅम से भी
लड़ रहा है … [ इंसा]
याद कर ओ मनुष्य..
जब मैं कहता था…[वक्त ]
तू किस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है..