हर साल उस रावन को क्या मारते हो
जो मर कर आज भी ज़िंदा है
जिसने माँ सीता का हरण भले ही किया
परंतु उनकी इच्छा की विरुध उन्हें
कभी हाथ नही लगाया
परिणाम! पाप का अंत
तो हम आज भी बार बार उस ही रावन को क्यों मारे
यदि मारना ही है , तो आज के उस रावन को मारो
जो सीता हरण तो करता ही है
और उसे दरिंदे की तरह नोच नोच कर मार डालता है
या अधमरी हालत में ज़िंदा मरने के लिए छोड़
खुद वो जानवर दूसरे शिकार की तलाश में आज़ाद घूमता है………
विजयदशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ