जाने ज़िंदगी किस भीड़ में खो गई
एक वक़्त था जब अपनी थी
आज चिंताओं की हो गई ,
जो पल बेफ़िक्र जीते थे
वो आज हमारी सोच के मोहताज हैं
क्योंकि सिर पहना हमने केवल अंधकार का ही ताज है
इसलिए
धूप का आनंद
बरसात का प्यार
पतझड़ के रंग
और
सुख का सार
सब बन गया व्यापार…………
क्योंकि दुवेश और घ्रणा के आगे हम इंद्रियाँ गए हार
भूल गए अपने संस्कार
इसलिए
खो बैठे अपनो के प्रति प्यार