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    वो जब चाहें हमारे…

    41.

    वो जब चाहें हमारे

    हम हर हाल में पकडे उनकी रहें,

    ये केसा है दस्तूर

    जिसमें भरा है केवल एहम और गुरूर

    पर किस चीज़ का 

    ये आज तक हम समझे नहीं

    और अब समझ कर केरेंगे भी क्या

    जब वक़्त हाथों से निकल ही गया ,

    क्योंकि 

    अब रह गए जो ज़िंदगी में केवल शब्दो के गीत हैं

    उनमें बसे नगमे अब बह गए कहीं……….

    42.

    ऐ मात्रभूमि के भक्त

    ऐ मात्रभूमि के भक्त

    जो तुमने ना लिया होता

    संकल्प उस वक्त

    तो रोशन ना हुआ होता ये जहाँ

    ना बनता ऐसा काँरवा

    जिसने बजाई दुश्मनों की 

    ईंट से ईंट

    बाँधी देशवासियों की आपस में

    ऐसी प्रेम संग प्रीत

    कि बन कर एक जुट

    कर दिखलाया कमाल

    देश द्रोहियों को देश से

    घसीट कर दिया निकाल

    होंसले बुलंद थे इतने तुम्हारे

    कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैलाए जय हिन्द के नारे

    जि़न्दादली से कुर्बान हो जवानों ने

    कायम करी मिसाल

    दुश्मनों के चेहरों के छक्के छूटे

    छोड़ गए सवाल

    कि दुश्मन ने भी सिर झुकाया

    देख कर ऐसे देश को नोनिहाल।

    43.

    तू ही है तू

    तू ही है तू

    तू ही है तू

    जिसके लिए मैं जीता हूँ….

    सनम मेरे

    तेरे संग में

    पूरी हुई

    हर आरजू …

    जीता हूँ मैं

    तेरे लिए

    तेरा हूँ मैं

    मेरी है तू ….

    तू ही है तू

    जिसके लिए मैं जीता हूँ….

    महकती रहे

    सुबह शाम तू

    तुझे देख यूँ ही

    गुन गुनाता रहूँ …..

    तू ही है तू.

    44.

    जाने क्यों हम इतने है बेज़ुँबा

    जाने क्यों सब रहते हम से खफ़ा

    जाने क्यों ये दूरियाँ हैं

    आख़िर इतनी क्या मजबूरियाँ हैं

    समझते वो भी सब हैं

    समझते हम भी सब हैं,

    फिर क्यों नज़रो से नज़रें मिलते ही प्रेम के बजाए

    दिलों में चलती नफ़रत की छुरियाँ हैं,

    और अगर इस रिस्ते का कोई वजूद ही नहीं

    तो क्यों हम एक दूसरे की कमज़ोरियाँ हैं……..

    45.

    वक्त आ गया है

    वक्त आ गया है

    खाने का कसम]

    नारी संग दुष्कर्म

    करने वालों को

    ना छोड़ेंगे हम

    नोच लेंगे हर वो आँख

    जिसकी दृष्टि में हो खोट

    काट देंगे वो हाथ

    जो नारी स्पर्श करने का करें प्रयास

    हमारे अंग निर्वस्त्र कर

    नोचते हैं खरोचते हैं

    उन दरिन्दों को सज़ा देने के लिए

    फिर हम क्यों सोचते हैं

    जला कर राख कर दो उन्हें

    बीच सड़क पर इस कदर

    कि रहूँ काँपती रहे उनकी हर पल

    हो इतना डर

    अब इन्तज़ार ना करेंगे

    औरों के फैसलों का

    टुकड़े कर दो इतने

    कि नाश हो जाए पापिओं की नसलों का

    वक्त के साथ

    हिम्मत लो हाथ

    मिट्टी में मिलाकर

    कर दो सर्वनाश

    जीवन गवा चुकीं है जे बच्चियाँ

    उनके आँसुओं को याद करो

    हटा कर ये खौफ के बादल

    ये दरिन्दे समाज से साफ करो

    क्योंकि

    आज बच्ची है किसी गैर की

    कल हमारी हो सकती है

    आज रो रहीं है आँखें किसी और की

    कल तुम्हारी हो सकती है।

     46.

    तेरा मेरा रिश्ता नाजायज़ नहीं

    जाने क्यों दुनिया को भाया नहीं,

    शायद 

    जलते हैं वो हमारी दोस्ती से

    क्योंकि 

    हमे एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं

    पर अब किसी की परवाह हम केरे क्यों,

    जबकि हमारी दोस्ती एक दूजे के लिए है

    जिसकी केरनी हमें नुमाइश नहीं,

    बोलने दो उन्हें जिन्हें खटकते हैं हम

    शायद उनके दिल में किसी को अपना बनाने की कोई खुआईश नहीं,

    और कोई बनाना भी चाहे

    तो अब उनके अंदर गुंजाइश नहीं…..

    47.एक नन्हीं सी जान

    एक नन्हीं सी जान

    देश भक्ति के प्रति भेजती

    आप सबके लिए पैगाम

    ये कोई कहानी नहीं है

    कोई कविता नहीं है

    एक बच्ची के मन के विचार हैं

    जो काल्पनिक भी नहीं है

    सब अपने माता-पिता के साथ सोते हैं

    मैं माता के साथ सोती हूँ

    सब अपने पिता संग स्कूल जाते हैं

    मैं माता संग जाती हूँ

    सब के पिता रात को घर लौट कर आते हैं

    मैं दिन गिनती रहती हूँ

    सब के पिता उपहार दिला कर लाते हैं

    मैं उनके लिए इकट्ठा करके रखती हूँ

    सब के पिता गलतियों पर डाँटते हैं

    मैं उसके लिए भी तरस्ती हूँ

    सब अपने पिता के ईदर्गिद रहते हैं

    मैं केवल पिता को महसूस करती हूँ

    जानते हैं दोस्तों क्यों?

    क्योंकि सबके माता-पिता साथ रहते हैं

    और मेरे पिता मातृभूमि की रक्षा के

    लिए सीमा पर बैठे हैं

    इसलिए दोस्तों

    ये बलिदान केवल अकेले सैनिक का नहीं होता

    इसमें संग उसके पूरा परिवार है शामिल होता

    मुझे गर्व है कि हम हिन्दुस्तानी है

    और भारत माता के लिए देते कुर्बानी है।

    48.कर गुज़र कुछ ऐसा

    कर गुज़र कुछ ऐसा

    जो हो एक भंवर के जैसा

    जिसके चक्रव्यूह में फँस कर 

    भस्म हो जाए

    हर आतत्ताई

    कर जाए दूर-दूर तक हम कोने से बुराई

    खौफ फैले ऐसा

    कि समझ आ जाए पापिओं को

    अनेकता में एकता की गहराई

    कि हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई

    हम एक हैं सभी भाई।

    49.

    एहसासों के मोतीओं को पिरों नही पाते 

    नज़रें मिला कर तुमसे बुझे बुझे हो जाते,

    इशारे करते जब तुम 

    हम खुद को गुम सुम से पाते,

    अनकहे शब्दो के भंवर में

    खुद ब खुद फँस जाते,

    सपने देखते नही तुम्हारे

    जाने फिर क्यों गिनते हैं तारे,

    दूर दूर तक थमा सन्नाटा

    फिर क्यों लगता की कोई है जो हमको है पुकारे,

    और जब दिखाई भी नही देता कोई

    फिर किससे ये एहसास हैं तकरारे……..

    50.सीमा पर बैठे

    सीमा पर बैठे

    याद करते

    माँ का आँचल

    पिता का स्नेह

    यारों की यारी

    घानी की आँखें प्यारी

    आपस में बाँटते

    समय काँटते

    पर सब फीका पड़ जाता है

    क्योंकि दिल में बसी है धरती माँ के प्रति

    निर्झर बहती वफादारी

    जय हिन्द का करते जय जयकार

    अटल-अडिग खड़े रहते

    दुश्मन की सुनते ललकार

    भूल जाते नित का सुख

    धरती माँ को जो इतना करते प्यार

    ऐसे हैं हमारे वफादार।

    51.

    जीवा पर होता विराजमान माँ सरस्वती

    जीवा पर होता विराजमान माँ सरस्वती

    इसलिए जो हम कहते है होता वही

    वाणी के शब्द होते अनमोल

    इन्हें सेच समझ कर ही बोल

    यकीन ही बनता है हकीकत

    ना समझो इससे नसीहत

    जुबाँ में है शक्ति

    करो उसकी भक्ति

    इसलिए मन के विचारों की करो शुद्धि

    कहावत है

    विनाश काले विपरीत बुद्धि

    मनुष्य की वाणी से निकला शब्द

    तीर कमान के है समान

    उसे बदल नहीं सके स्वयं भगवान

    हमारा मन हमारी सोच और हमारी वाणी

    होती हमारी हृदय विदारक की पहचान

    जिसके बलबूते पर जीवन रचते है हम

    उस विधाता की किताब में सजते हैं हम।

    52.

    तम्मनाओं की कोई समाई नहीं 

    तेरी मेरी बुनाई नही

    सब कुछ होते हुए भी

    मुख से ये ही निकल ता है 

    ये चीज़ मुझे दिलाई नहीं,

    सागर की तरह हम गहरे नहीं

    पर्वत की तरह विशाल नही.

    मिंटो में आँधी उड़ा सकती हमें

    फिर भी हम कहते हमारी मिसाल नही.,

    इंसान ने कंप्यूटर बनाया है

    कंप्यूटर ने इंसान नहीं,

    पर अब भरोसा है उसके उत्तर पर

    खुद के जवाब पर नहीं,

    जिसने रचा ये भ्रमाण 

    उसे मूर्ति रूप दे

    क्या दिया प्रमाण ?

    दिल में उसे उतरा नहीं

    फिर कहते हैं हमे सावरा नहीं……..

     53.

    सनम की आँखों में

    सनम की आँखों में

    दिखते हैं हम

    हाय क्या नज़ारा है

    खिंचते हैं हम

    कि लगाती जब वो काजल

    पलके हमारी झपकती

    केश वो सवारती

    बारिश यहाँ बरसती

    ऐसा है मेरा मेहबूब

    जिसकी हर चाल पर

    गया मैं डूब

    बिक गया सिर से पाऊँ तक

    आशिकी में उसकी

    घायल कर दिया एक नज़र में

    सादगी ने जिसकी।

    54.

    हर हथियार से उच्च है ये शब्दो का घेरा

    कटु वचन हो तो जीवन में छाता अंधेरा

    मधुर वचन हो तो हर पल नया सवेरा,

    इसलिए शब्दो के इस जाल में ना फसना कभी

    इसे जगह देना ना मन में कहीं

    सुख चैन का ये हमारे करता विनाश

    जीवन से हो जाओगे हताश

    क्युकि

    जो इन की बेड़िओं के दल दल में धँस जाते हैं

    वो रस्तो पर अटक जाते हैं

    और 

    जिसकी इस पर विजय प्राप्त हो जाए

    तो समझो वो कभी दुख ना पाए…….

    55.

    अदाएँ बिखरते

    कितने इतराते,

    शीशे के आगे बार बार टकराते

    खुद को देखने के बहाने बनाते

    फिर मुस्कुरकर 

    हमसे नज़रे चुराते,

    पर चोरी चोरी देखते हमें

    और एक हम हैं जो जान कर भी अंजान बन महबूब के लेते मज़े,

    पता है इसे ही पियार का इज़हार कहते हैं

    पर इश्क से महरूम लोग

    हमें बीमार कहते हैं…

    56.

    डरते नहीं हम मुश्किलों से

    हिम्मत है हमरी बँध मुठ्ठीयों में,

    अंधेरे को उजाले में बदलने का रखते हैं दम

    दुश्मन भी थर थर कांप ता है

    सीना तान कर जब निकलते हम,

    तकदीर पर हम रोते नहीं

    क्युकि कभी सोते नहीं,

    हॉंसलें हैं इतने अटल

    कि चाहें गर 

    तो बंज़र ज़मीन पर भी उगा सकते है फसल……..

    जय भारत

    57.

    अनगिनत वजह हैं

    मुस्कुराने को गुनगुनाने को,

    परंतु हम केवल ढूंढते हैं फसाने दिल को रुलाने को

    अजीब इतफ़ाक़ है ना दोस्तों

    सब कुछ होते हुए भी जाने किसकी तलाश है,

    किनारे पर खड़े हैं मंज़िलों के 

    फिर भी दिल हताश है…….

    58.

    हुज़ूर को तुम देखो 

    ये मुमकिन है

    हुज़ूर तुमको देखे ये ज़रूरी नही,

    इश्क़ तुम करो बहोत खूब है

    वो भी तुमसे करे ये ज़रूरी नही,

    गर दी आशिकी में तुमने उम्र भर वफ़ा

    समझो तुम सच्चे आशिक हो कोई जुआरी नही

    साक्षात्कार के हो भक्त

    मंदिर में बैठे पुजारी नही,

    क्युकि

    मुमकिन है हुज़ूर को इल्म भी ना हो तुम्हारी दीवानगी का

    तस्वीर बसी हो मन में किसी और की तुम्हारी नहीं……….

    59.

    ना झिलती एकेले खुशी

    ना झिलता एकेले गम

    ना हो अगर

    साथ अपनो का संग,

    सब होता बेकार

    यदि ना हो दिलों में प्यार,

    पर ये समझ ता नही इंसान

    हर चीज़ को बना बैठता व्यापार……….

    60.

    ज़रूरी नहीं सीखना सब कुछ

    ज़रूरी है सब कुछ सीखने की चाह,

    ज़रूरी नहीं हो सब कुछ हासिल

    ज़रूरी है खुद को बनाना काबिल,

    ज़रूरी नही हो हज़ारो हाथ

    ज़रूरी है ज़रूरत पर देना साथ,

    ज़रूरी नही कुछ साबित कर दिखलाना

    ज़रूरी है भटके हुए को रास्ता दिखलाना,

    ज़रूरी नहीं इच्छाओं को दबाना

    ज़रूरी है इच्छाओं की सीमा बनाना,

    ज़रूरी क्या है क्या नहीं

    कौन सोचता है

    पर ज़रूरी है इसपर विचार करना

    ज़रूरी है वास्तविकता को स्वीकार करना……..