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    दीपावली की बधाई हो..

    301.
    दीपावली की बधाई हो

    प्रेम संग दिलों की सगाई हो
    दुवेश भावना की घर से विदाई हो
    अपने घर के साथ साथ रोशनी किसी ज़रूरत मंद के घर लगाई हो ……………………..
    दीपावली की रौनक इस तरह छाई हो
    हर्ष उल्लास के साथ
    हर चेहरे पर मुस्कुराहट छाई हो………..
    दीपावली की बधाई हो
    सोनाली निर्मित सिंघल
    302.
    मैं बन कबीरा
    उठना चाहता हूँ जग क बीड़ा
    कहाँ से शुरू करूँ
    कोई बतलादे बन गुरु ,
    मैं साथ समुंदर के रहूं
    सराहना चाहता हूँ हर खुश्बू
    वक़्त को सलाम करता
    फिर कदम रखूं
    दिल में अनगिनत आरज़ू लिए
    संग सबके चलूं ,
    चाहता हूँ कुछ ऐसा बनाना ये जहाँ
    की मुस्काराकर मेरा खुदा कहे

    तू मुझमें नही
    मैं तुझमें बासू……………..
    303.
    कविताओं के रास्ते हमने जीवन खिलाया है
    जो कह नही पाते थे वो लिख कर बताया है ,
    इशारा था जिनकी ओर उन्होने पढ़ कर भी नज़र अंदाज़ सा ताल्लुफ जताया है
    और जो दिल से हमें चाहते थे अपना मानते थे
    उन्होने और भी गहरा होने का एहसास जगाया है …..

    304.
    आँखें हर पल भीगी थी
    कैसी वक़्त की उलझन है
    लाल रंग से बनी दुल्हन है ,
    ठिकाना मिल रहा है
    पर जीने का बहाना नही ,
    शहनाईयाँ बज रहीं है
    पर होंठों पर तराना नही,
    वो सोचती है
    खिलोने ही तो माँगे थे
    चौके पर बिठा दिया
    गुड्डा माँगा था
    दूल्हा दिखा दिया ……………
    पियासी ही तड़पती रही
    की कहीं पानी माँगा तो……समुंदर ना दिखा दें
    इस छोटी सी उम्र में ……….अब मुझे माँ ना बनवा दें ,
    ये सब अब और क्या समझ पाती
    मैं तो अभी तक ठीक से चलना भी नही सीखी थी
    रोते रहने का अर्थ भी नही समझ पाई
    क्योंकि आँखें ही मेरी हर पल भीगी थी ……
    आँसू थे जिनके करंण
    वो मेरे सगे थे
    जिन्होने पौंछ ने थे वो अब तक नही जगे थे ,

    मुझे ज़िंदगी को जागीर समझ पहुँचा दिया गया था वहाँ
    जहाँ मेरी मर्ज़ी बिना बसाया गया मेरा डेरा था
    उस चुनरी को ऑड कर
    जिसके भीतर सिर्फ़ और सिर्फ़ अंधेरा था ………………
    305.
    ताक़त को मेरी तुम क्यों
    आज़माना चाहते हो,
    कह तो रहा हूँ मैं कमज़ोर नही
    बस तू मेरी कमज़ोरी हो………..
    306.
    उसके एहसास में मैने खुद को पाया
    उसकी बातों में खिलखिलता था मेरा साया ,
    आज भी उसको पता है कि
    मुझे क्या पसंद है
    उल्टी सीधी mail भेज कर तंग करता है
    क्योकि मेरा पढ़ाई में हाथ तंग है ,
    मैं ज़िद करती थी तो
    बच्पन में मेरे खिलोने तोड़ जाता
    आज बिन कहे मेरी पसंद की चीज़ मेरे लए छोड़ जाता ,
    बच्पन मैं कितना झघड़ ता फिर बात भी नही करता था
    आज रोज़ बहाने से बात करलेता है
    ना मिलूं तो video call कर मुझे देख लेता है ,
    घूर कर आँखों से पूछता है
    अगर मेरा चेहरा उदास होता है
    बच्पन की तरह आज भी
    वो मेरे साथ होता आयी ,
    वो सचता है कि शायद मैं उसके प्यार करने के अंदाज़ को समझती नही
    उसे क्या पता उसके सिवा कोई और मुझे इतना समझता ही नही ,
    इशारा नही एक दुरे को दिल से याद करने की देरी है
    भरी महफ़िल में वो कहता है
    वो पगली से बहन मेरी है ,
    भाई बहन के इस रिश्ते को कभी किसी की ना लगे नज़र ……..
    यूँ ही बीती यादों संग
    नया बनता जाए सफ़र ……………..
    307.
    कभी उलझी भी है
    कभी सुलझी भी है

    कभी मेरे हाथ में तुलसी भी है
    पर गुज़रते हालत में कई बार मैं खुद को संभाल नही पाता हूँ
    मेरे प्रभु मैं तुझमे मन बसाना चाहता हूँ
    रास्तों पर अक्सर मैं फिसल जाता हूँ
    मैं तुलसी की कीमत क्यों नही समझ पाता हूँ
    मैं तेरे सिवा अब और कुछ नही समझना चाहता हूँ
    मेरे मौला मेरे सद गुरु
    मुझे बना इस काबिल कि मैं तुझे अपने मन का मलिक बना, तेरे मन में जगह बनाना चाहता हूँ……..

    308.
    ज़िंदगी की ख़ासियत है 
    जब तक माँ बाबा का साथ है 
    चाहे जीवन में कोई भी परिस्थिति आए
    दो शक्स हैं धरती पर जिनका सदेव सिर पर हाथ है