ANUBHAV
शहर सूने हो गए
दोपहर काली हो गई..
ये तेरे मेरे बच्चन की किताब
जाने कैसे खाली हो गई..

तिल भर वक्त भी
क्या पता उसका साथ कल हो…
या हो ..ही नहीं..


किसी ने ना देखा
फिर भी कहते हैं..
कर्मों का ही है सारा लेखा..


खुशी दबाई दब गई…
ए वक्त बता और कौनसा हुनर दिखाऊं
कि आज के इस दौर से बता …
कैसे पुराने दौर में जाऊं …

लड़ रहा है … [ इंसा]
याद कर ओ मनुष्य..
जब मैं कहता था…[वक्त ]
तू किस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है..

