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    ये नज़र लगना क्या होता है ?

    201.
    ये नज़र लगना क्या होता है ?
    इस शब्द को तलवार बना
    आदमी क्या क्या बोता है,
    और खुल के मुस्कुराने वाले पलों को खोता है
     जश्न ना मनाओ
    नज़र लग जाएईगी
    खुशी को छुपाओ
    दुनिया को खबर लग जाएगी
    कुछ मत करो 
    बस अरमानों को पोटली में बाँध कर
    तालें में धरों,
    पर ये केसी सोच है
    इस मन घड़न रचना के दायरे में 
    लोग क्यों रहते बेहोश हैं,
    जैसे – बेटी ने लिया जन्म
    चलो कोई बात नही
    पर ना माना जश्न
    आख़िर क्यों ?
    क्यों ना खुशियाँ 
    मनाएँ हम
    खुशियों के गीत गाएँ हम,
     इस नज़र के भंवर में वँस कर
    अपने अरमानों को क्यों दफ़नाएँ हम,
    सब कुछ देने और लेने वाला
    वो परम पिता एक ही है
    जब उसने पृथ्वी की सुंदरता रचते हुए ना सोचा
    की नज़र लग जाएगी
    तो हम क्यों खुशियाँ बाँटते हुए सोचे

    की दुनिया को खबर लग जाएगी
    हमारी खुशियों को नज़र लग जाएगी ,
    ये सब बेकार की वो बातें हैं
    जिनको दूसरों पर थोप कर
    हम केवल उनके दिलों को दुखाते हैं
    202.
    अजीब अजीब से पहलुओं से कई बार
    कुछ इस तरह सामना हो जाता है
    चलते चलते रास्तों पर 
    होसला डगमगा जाता है,
    जिस सोच से कभी नही
    घबराएँ हों,
    जिस सोच से कभी नही
    घबराएँ हों………..
    उस के आगे सिर ,
    झुकाया जाता है
    मजबूरन
    ज़ुबा तो स्वीकार कर लेती है
    पर ये मन
    उसे स्वीकार नहीं कर पाता है
    वाह रे ए वक़्त 
    तू भी किस किस तरह 
    पलट कर आता है………
    पल में ज़िंदगी को तमाशा दिखा जाता है………..
    203.
    आज फिर दिल बहुत उदास है
    उन रिश्तों के धागे उलझ गए हैं
    जो दिल के बहुत पास हैं,
    माना के कभी कभी अच्छी होती हैं दूरियाँ
    पर पाता तो चले आख़िर क्या बात है,
    क्योंकि कई बार
    हम बिन कहे समझ पाते नही
    ये बात उन्हें समझा दे कोई………….
    204.

    तुम्हारी शिकायतों की चिट्ठी पढ़ कर
    ऐसा लगता है
    कुछ पल और ऐसे ही जी लें
    क्योंकि खुद को इसके हिसाब से चलाने के बाद
    भले ही तुम हमे चाहने लागो
    पर हम खुद को चाह नही पाएँगे
    205.
    ज़माना सोचता है
    अब ठहर जाएगी ज़िंदगी हमारी
    क्योंकि उन्होने हमारे दरवाज़े पर ताला लगा दिया
    पर वो नादान
    हमारी राहों से परेशान
    क्या जाने
    कदमों से तो हम दुनिया
    के लिए चलते हैं,
    कलम ने बहुत पहले ही हमें
    दिल से चलना सिखा दिया ……..
    206.
    अनजाने कभी कभी
    कुछ इस तरह टकराते हैं
    मुलाक़ातें कभी हुई नहीं
    शामें साथ गुज़री हों
    यूँ जसबात टकराते हैं
    207.
    कसम है मुझे ए वक़्त
    अब तुझ पर भरोसा रख कर
    नही बैठूँगा
    तुझे दोस्त समझ सोचता था
    तेरी दोस्ती के कारण किनारों से मिलता था,
    पर कुछ बातें

    ठोकर खा कर ही समझ आती हैं
    तू भी मेरा नहीं
    सिर्फ़ कर्मों का साथी है…….
    208.
    महकती  है खुशबू उनके पैमाने से
    वो मुस्कुराते हैं हम पर
    जब गुज़रते हैं हम उनके शामयने से,
    गौर तो वो फ़ार्मा ते हैं हम पर
    पर जाने क्यों डरते हैं हमारी महोब्बत को आज़माने से
    हमने तो इकरार कर दिया था बीच मैखने में
    शायद दर गई वों उस वक़्त ज़माने से,
    हमने तो लिख दिया , तकदीर में हमारी उनका नाम
    अब उम्र भी काट जाए तो गम नही
    उनको ……………हमे अपना बनाने में,
    उनके इनकार में इकरार की तस्वीर में , हम खुद को देख चुकें हैं
    इसलिए लुफ्ट उठा रहीं हैं वो हमे सताने में,
    आशिक की आशिकी कभी छुपी नही छुपाने से
    जानती हैं वो 
    तभी तो फ़ुर्सत नही है उन्हें इतरने से,
    बाहों में भर लेंगी 
    कह गई थी फ़िज़ाएं हमे बहाने से
    पत्थर के महल को छोड़ कर आएँगी वो एक दिन
    हमारी महोब्बत से भरे ग़रीब खाने में……………

    209.
    दो पंक्तियों में
    बस यही कहना चाहूँगी
    जब भी ,जहाँ भी, जन्म मिले

    सदैव औरत ही बनना चाहूँगी
    वजह……
    खुदा ने इतनी खूबसूरती भरी है इसमें
    जो संसार कभी पूर्ण रूप से देख नही पाएगा
    मगर हम खुद को खुश नसीब समझेंगे
    यदि खुदा हमे बार- बार उसका हिस्सा बनाएगा …………..
    210.
    ईमानदारी के अंदर
    छुपा मिलता है समुंदर ,
    शायद इसलिए ही कमज़ोर लोग
    बेईमानी का रास्ता अपना लेते हैं
    और सच्चाई पर चलने वाले लोग
    ईमानदारी के रास्ते पर चल कर भी अपना रास्ता बना लेते हैं………….

    211,
    होली का उत्सव हो
    गुंजिया के साथ गपशप हो
    रंगों से घुली  ज़िंदगी हो,
    आप सब को मिली हो
    चेहरे पर मदुहास हो,
    साथ आपके आपका विश्वास हो
    कार्य कल की बजाए आज हो,
    समय कोई भी रंग दिखाए
    आपको जो रंग पसंद हो उस ही का एहसास हो
    होली मुबारक 

    212.
    आज कह दिया जमाने से
    ना पूछो की मैं क्या चाहती हूँ,
    ये लड़ाई मेरी खुद की है
    अब मुझे सहारा मत दो,
    जब चाहिए था
    तभ किसी ने परवाह ना की
    अब मैं फ़ैसला ले चुकीं हूँ
    तुम मुझे किनारा मत दो,
    मुझे समझ आ गया है
    कि रास्तों को उस दिन
    खुद ब खुद किनारा मिल जाता है
    जिस दिन कदमो को खुद का
    सहारा मिल जाता है………
    213.
    तुझे देखते रहना मेरे लिए ज़रूरी नही
    तेरे दिल मैं जगह बनी रहे 
    है ज़रूरी,
    तू रोज़ एक बार दिल से याद करले
    जिसमे नही हो कोई मजबूरी,
    मैं समझूंगा मैं जी गया
    हर दिन का वो लम्हा
    जिस में तू मुझे याद करे
    मेरी टूटती साँसों को सी गया…………..
    214.
    बेवजह की नाराज़गियों से दिल
    कुछ इस कदर टूटा है
    लगता है अब हर रिश्ता जूठा है,
    वो सब जो प्रेम ने बोया था
    जाने किस आग में झोंका है
    फिरसे हाथ बढ़ाने का इस बार
    मन नही होता है,

    पर कैसे जिएंगे 
    ये सोच – सोच कर
    वही मन रोता है
    आज लगता है
    आदमी एहम के आगे वाकई छोटा है,
    मन का समुंदर  क्यों फूट फूट कर रोता है
    उँची छलाँग मार 
     मेरे अतीत को भिगोता है,
    हरा हुआ दिल फिर कहता है 
    छोड़ माना ले
    तेरा रिश्ता छोटा है
    कदम कहते हैं 
    नही अब नही
    ज़मीर भी कुछ होता है,
    …………………….
    आख़िर आदमी एहम में आकर
    रिश्ते क्यों खोता है……………..
    215.
    वक़्त ने एक बार फिर
    तुम्हें मेरी मंज़िल का किनारा बनाया है
    अब तो मुझे क़ुबूल कर लेना
    पहले तो तुमने मुझे ठुकराया है,
    मैने शिकायत तो तभ भी ना की थी
    मान लिया था
    मेरी महोब्बत में कमी थी,
    पर अब वफ़ा का पल्ला मेरा भारी है
    अंजाम अब भी जो हो
    याद रखना सनम………………..
    ये दीवानी हमेशा तुम्हारी थी……….तुम्हारी है……..
    216.
    शहीदी दिवस के अवसर पर
    शहीदों के मन की बात कहना चाहूँगी ………

    सरहदों से इश्क कर बैठे हैं
    इसलिए हम वही पर रहते हैं,
    ऐसा नही की हमारे परिवार में हमारा मन नही
    पर मक्खी भी किसी गैर मुल्क की सिर उठा कर सरहद को देखे
    वो हमे पसंद नही,
    बात जब मात्रभूमि की हो
    तो हमे किसी पर विश्वास नही
    इसकी खुशहाली बनाए रखने के सिवा
    हमारा कोई खुवाब नही,
    बल्कि अब खुवाहिश है
    कि मर कर भी रूह को रखें ज़िंदा
    ताकि थर थर कांपे हर वो परिंदा,
    मज़बूर करदें हर आतंक को सोचने पर
    की आख़िर लड़ना किससे है
    यहाँ तो
    सरहदें ओटें सेना ज़मीं पर है
    तो
    फ़िज़ाओं से लिपटी रूह में सेना ……………आसमाँ में
    ऐसी देश भक्ति ना देखी किसी जहाँ में
    सलाम कर रुख़ मोड़ लें
    भारत को जीतने का खुवाब छोड़ दें……………
    जय भारत
    217.
    झुकना मुनसिफ़ समझा हमने
    क्योंकि रिश्तों का पल्ला भारी निकाला,
    हमने सोचा हम एकेले जी लेंगें
    पर इस सोच में घर हमारा खाली निकला,
    सही और ग़लत की परिभाषा हम जानते नही
    पर उनके बिना जीना मुश्किल निकला,
    अब चाहे वो हमें कुछ भी समझे
    हमने जब साथ निभाने की फिरसे ठानी………
    तो हमारा मन भी हमारे साथ ही निकला………………..
    218.
    आशिकी बढ़ती गई

    जैसे जैसे हमारी शायरी से
    दागा देने वाले दोस्त कम हो गए
    जो दिल से नही, दिखावे के लिए जुड़े थे
    वो दूर हो गए………..
    और जो मन से चाहते थे
    पर कह नही पाते थे
    वो बहुत खूब – बहुत खूब कह करीब हो गए……………………..
    219.
    वक़्त से नाराज़ हो चला
    हवाओं से कहा तुमने मुझे छला,
    बहक गया था मैं
    खुद की लगाई हुई आग में जल रहा था मैं,
    उससे लड़ने बैठा था
    जिसकी गोद में
    मैं खुद रहता था,
    जानते हो कब समझ आया
    तभ…………जब जिनको अपना समझा उन्होने मुझे ठुकराया
    और जिस वक़्त से मैं लड़ता था
    उस ही ने मुझे गले लगाया ………….
    220.
    गर रूठो तो मानना भी सीखो
    क्योंकि रूठे को मानाने में 
    मज़ा तभी आता है
    जब वो हमारी शक्ति के भीतर 
    मान जाता है,
    क्योंकि
    तज़ुर्बा कहता है
    गर रूठने वाला ……
    मानाने वाला की शमता को पार कर ले
    तो एक खूबसूरत डाली उसके जीवन की टूट जाती है
    वो स्वीकार कर ले…………