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    भागती हुई सी ज़िंदगी …

    101.

    भागती हुई सी ज़िंदगी 
    जाने कहाँ गए वो सुकून के पल 
    केवल बड़ रही है लालसा
    बिछूड़ गया हमारा कल
    जहाँ संगीत मे नज़्म थी
    रिश्तों में कसम थी
    आज एहम ज़िंदा हैं
    शायद इसलिए साँसे शर्मिंदा हैं 
    माया के पिंजरे में बंद आदमी
    समझता खुद को परिंदा है

    102.

    वक़्त नहीं कि एक नज़र आसमाँ देख लें
    पर उसे छूने की खुवाहिश में इस कदर मशरूफ हैं
    की वो हमारे साथ है
    पर हमे उस ही का आभास है

    103.

    तुम जब चाहे शराबी
    कह लेते हो,
    कभी पूछा है 
    क्यूँ पी लेते हो,
    हमारी भी अपनी वजह है कोई 
    तुम्हे क्या मालूम
    ये आँखें कब से नही सोई…….
    बिना जाने कुछ भी कहना ,
    तुम्हारे लिए आसाँ होगा
    किसी ठुकराए हुए आशिक से पूछो
    जिसने खाया हो महोब्बत में धोका…………..

    104.

    दिखता चिरागों में भी अंधेरा

    जाने किन सायो ने हमको घेरा

    कदम रुक गए खुद

    रोशनी ने लगता ,

    बदल लिया रुख़

    पलके झपकू तो कंकर चुभता

    आज मेरे लिए कोई क्यों नही रुकता

    में तो वक़्त के पीछे नही भागता रहता

    फिर ये मुझे ही क्यूँ ताकता रहता

    मेरी हर चल पर रहती इसकी नज़र

    जाने क्यूँ रखता मेरी इतनी खबर……

    105.

    साथ है वो वक़्त

    जो हाथ में हो,

    धीरज हो मान में

    विश्वास हर साँस में हो……..

    ताक़त बन जाएँ एक दूसरे की

    हर पल इच्छा हो कुछ सीखने की……….

    किसी के ना गुलाम बने

    ज़िंदगी को सलाम करें…………

    106.

    वफ़ा के लिए 

    किसी से खफा ना होना,

    मेरे दोस्त 

    तू ज़िंदगी से कभी जुदा ना होना

    साथ तो हर पल 

    बँधते है, छूटते हैं

    मगर आगे वोही भड़ते हैं

    जो खुद रस्तो को बूझते हैं

    जिनके कदम कभी नही रुकते हैं….

    107.

    मैने समय से सीखा है

    जीने का सलीका

    जो पल बीत गया

    वो उस में नही जीता………………

    108.

    ज़िंदगी एक सच है

    जो आज है वो अब है,

    फिर परवाह किसी की हम करें क्यूँ

    किसी से डरें क्यूँ,

    जब मीलों लंबे हैं रास्ते

    तो रोना किस वास्ते,

    जो साथ चल रहा है देखें उसको

    जो छूट गया भूलें उसको,

    हर पल नई उम्मीदों का दामन थामे

    क्युकि

    जिस खुदा की रहमत में दम है

    उसका अंश हम है

    ज़िंदगी एक सच है

    जो आज है वो अब है…………..

    109.


    कोई शाम तेरी याद बिना गुज़रती नही
    गम ये है कि………
    तू मुझे मिलती नही……..
    तेरा चेहरा मेरे चेहरे का पेहरा है
    मेरे होठों पर नाम सिर्फ़ तेरा है,,,,,,,,,,,
    चुटकी भर सिंदूर करता तुझसे गुज़ारिश है
    माँग में भर ले इसे ….
    हर खुशी तुझ पर वारी है………
    तेरे कंगन की खनक मुझे सोने नही देती
    तुझसे मिलने की तलप को
    और भी भर देती…….
    एक बार भर के देख मुझे अपनी बाहों में
    फूलों से भर दूँगा……….
    तू रखे कदम जिन राहों में…………….
    कोई शाम तेरी याद बिना गुज़रती नही
    गम ये है कि………
    तू मुझे मिलती नही…….

    110.

    तक़लीफ़ होती है 

    तुझे ऐसे देख,

    ऐसी कौनसी आग है

    जिसमे रही है खुद को सेक,

    एक बार कह 

    ऐसे मत सह,

    यकीन कर …..

    मैं तेरे निगलते आँसुओं को पीना चाहता हूँ

    मैं सिर्फ तेरे साथ जीना चाहता हूँ………

    111.

    तेरे आँसुओं की कीमत हम कभी चुका नही पाएँगे
    गुज़ारिश है तुझसे इन्हे इस कदर ना बहा 
    वरना हम तुझे निभा भी नही पाएँगे,
    इसलिए नही की हम कठोर हैं
    बलकि इसलिए की हम कमज़ोर हैं
    लड़ सकते हैं हम जहाँ से 
    पर लड़ेंगे नहीं
    रस्तो पर से काँटे तू खुद ही चुनेगी
    बस निकलेगी जिधर से 
    हम मिलेंगे खड़े वहीं………… 

    112.

    झूम उठता है तन

    जब भी करती हूँ 

    मन भ्रमण……

    113.

    ज़िंदगी एक इतेफ़ाक है
    यूँ कह लो एक मज़ाक है,
    कभी वफा देता है
    कभी बेवफा देता है,
    तो कभी जगा देता है 
    कभी सुला देता है,
    क्यूँ हम इसके हाथो कट्पुतली बन नाचते हैं
    आख़िर हम सब कुछ इससे ही क्यूँ चाहते है,

    114.

    गलत फैमियाँ होना जायज़ हैं
    क्युकि हम रिश्तों को निभतें हैं
    वक़्त यूँ ही नहीं किसी पर लुटाते हैं

    115.

    मेरी प्रार्थना 
    खामोशी को कलम के साथ जोड़ने का प्रयास करती रहूँ
    यही प्रार्थना है मेरी
    उस परमपिता परमेश्वर से,
    जिस मंज़िल को मैने चुना है
    उस पर सदैव चलती रहूँ……..

    116.

    अकेले चलते चलते मंज़िल पर थक गया

    उँचाईओ को छूने की चाह में मन फँस गया,

    मुड़ कर देखा तो मेरा साया भी मुझ पर हँस गया

    जिन्हें तू छोड़ आया है मुसाफिर 

    देख वहाँ काफिला बस गया,

    तेरे पास सुख दुख बाटनें को भी कोई नहीं

    अकेले इस बुलन्दिओ को छूने की चाह में 

    तू किस दल दल में धंस गया,

    कई बार पुकारा भी तुझे

    पर तू नज़र अंदाज़ कर गया

    गौर फरमां खुद पर ए बंदे

    सब होते हुए भी अब तू

    अपनों के लिए भी तरस गया……..

    117.

    किस खुदा की खोज में तू दर दर भटकता

    मैं तो तुझ में भी हूँ और उस में भी जो तुझे है खटकता, 

    मैं तो संसार के कण कण में हूँ व्यापक 

    गौर से देख तेरी नज़रें पहुँचे जहाँ तक,

    जिसे मैने अपना रूप दे धरती पर उतारा

    तूने तो उसे ही मिट्टी समझ धुतकारा ,

    पत्थर की मूर्ति को पूजने से क्या सोचता है

    मैं तुझे मिल जांउँगा ( नहीं )

    प्रेम भाव से सबको देखना शुरू करदे

    वादा है उस दिन ही दिख जांउँगा ………..

    118.

    तुमसे बेहतर ये तनहाईयाँ हैं 

    बिना बताए छोड़ कर नहीं जाती…..

    119.

    सवालों के कठग्रे में खड़े रहना चाहते है हम
    क्योंकि 
    जवाब जितने भी मिल जाएँ
    सवाल उतने ही बढ़ाते हैं हम………….

    120.

    तुम कहो
    मैं सुनु
    किताब के हर पन्ने में
    एक कहानी रचु,
    जो छू सके दिल को किसी के भी
    ताकी जो जीने का मतलब भूल गए
    इसे पढ़….
    जीना शुरू करदे तभी……..