221.
आँसुओं को आज भीगने का मन है
बारिश की बूँदों के साथ खिलने का मान है
रूह कह रही है
आज मुझे भी एकेला छोड़ दो
समुंदर की लहरो के साथ मेरा भी अकेले बाते करने का मन है
कदमों की थिरकन भड़ रही है
जाना कहीं चाहती हूँ
222.
रुक जाए जो
वो सैलाब नही
घर बैठे जो सपने देखें
वो खुवाब नही,
जो मंज़िलों को हासिल करले
उसका……….. जवाब नहीं
गर कर्मों में दम हों
तू खुदा की रहमतो का हिसाब नही,
ज़िंदगी एक सच है
कोई किताब नही
दिल से जो इसको जी ले
उसका तो कोई जवाब नही……………
223.
ज़िंदगी
खुश हूँ ज़िंदगी से
कभी खफा हूँ,
कभी करीब हूँ
तो कभी जुदा हूँ,
मैं परिस्थितियों के रहते बदलता हूँ
कभी रुक जाता हूँ
तो कभी चलता हूँ,
तू कभी कुछ नही कहती
चाहे मैं तुझसे दोस्ती रखता हूँ
या तुझे छलता हूँ,
मैं तेरे इस हुनर की भी तारीफ कैसे करूँ
मैं तो तेरे इस अंदाज़ से भी जलता हूँ,
ए ज़िंदगी
मैं चाहे कुछ भी कहूँ
मन से तुझे हमेशा सलाम कर चलता हूँ……………..
224.
खूबसूरत लम्हों को
जब जब साथ ले
रास्तों से गुज़रा…..
पथरो से बातें करना सीख गया
ठोकर ख़ाता अगर…………….
तो लगता एक और कर्म जीत गया …………
एक छोटे से बदलाव से ज़िंदगी पलट ती चली गई…………
भूक पियास लगे ना लगे मिटे ना मिटे
खुशी मिलती चली गई………………………………
225.
खुशी ने गम से कहा
तू पैदा ही क्यों होता है
जबकि तेरे साथ होने से
इंसान केवल रोता है,
गम बोला
मैं तो वास्तविकता हूँ
तू भ्रम है,
तेरी कद्र भी वहीं है
जहाँ गम है,
माना तेरे सहारे वो गुनगुनाते हैं
और मुझमे डूब जाते हैं
पर क्या करूँ
इस ही को कर्मों का खेल बताते हैं
मुझे भी कोई शौक नही
आँसू बन बहने का
मुझे भी होटो की लाली अच्छी लगती है
पर ये तो इंसान को ही सोचना है
गम या खुशी किसको चुनना है
क्योंकि इन दोनो की डोर
कर्मों की डाली पर ही लटकी रहती हैं…………
226.
कहाँ चले गए वो दिन
जब हम जी नही पाते थे एक दूसरे के बिन
संग तुम्हारे वक़्त बिताने को
मैं सबसे लड़ लेती थी,
काम कोई कुछ भी देदे
तुझसे मिलने की तलप में सब
कर लेती थी,
आज मिलना क्या छूटा
काम ख़त्म ही नही हो पाते मेरे
जब दिन भी छोटे लगते थे
और अब लगता है
सूरज भी उगता है देर से सवेरे
भूक भड़ गई है मेरी
पियास अब बुझती नही,
तुझसे मिलने के वक़्त को ही याद
कर ज़िंदा हूँ
वरना ज़िंदगी मुझमे अब बस्ती नही………..
227.
काँटा माली से कहता है
आप जिस गुलाब की हर वक़्त तारीफ करते हो………
माना हम वो गुलाब नही …………
मगर हम इतने भी खराब नही
की हमारा ज़िक्र ही ना हो
क्योंकि ये गुलाब जब जब मुस्कुराता है
ये काँटा उसकी उम्र बढ़ाता है………….
228.
दिन बीत जाते हैं
वक़्त भी गुज़र जाता है
गर साथ हों कुछ दोस्त
सुकून नज़र आता है,
इसलिए नही की हम उन्हें पसंद कर दिल में जगह देते हैं,
बल्कि इसलिए कि…………..
वो हमें हम जैसे भी हों स्वीकार कर साथ रहने की वजह देते हैं…………….
229.
उनको अपना बनाने की चाह मैं
जिस दिन खुद को बदला,
उनकी चाहते बदल गई………………….
हमने सपने देखे थे ………उनके साथ उगते सूरज के,
हमारी तो रातें ही ढल गई……………..
230.
सैनिक की रूह से आज हुई मुलाकात
अमर होने के बाद भी क्या खूब रखते हैं वो जज़्बात ,
कहते है ना जला तू मेरी याद में एक भी मोमबत्ती
हमे नही चाहिए ये हमदर्दी,
हम तो ख़ुसनसीब हैं
जो नसीब हुई देश के जवान की वर्दी,
और तिरंगे ने हमे छू कर, अमर घोषित कर
हमारी हर मुराद पूरी करदी,
हमारे देश के वासियों
हम केवल देश हित चाहते हैं
तुम यदि वीर को सम्मान देना ही चाहते हो………….
तो देश को अपना कीमती वक़्त दो
ज़्यादा नही दे सकते तो थोड़ा दो,
क्योंकि
हमें आपका सलाम नही
देश की सलामती चाहिए,
वीरों की याद में आपका नमन नही
देश का अमन चाहिए …………..
जय हिंद
231.
मैं तुझे इतना चाहूँ
कि देख आसमाँ झुक जाए
तुझे मेरे सिवा कोई ना देख सके
तू मेरे प्यार में इस कदर डूब जाए ,
जहाँ तक महके फ़िज़ा
खुश्बू तेरी ही उड़े,
तेरे दिल से निकली हर मुराद
खुदा पूरी करे,
मेरा हर जन्म
तेरे नाम हो सनम,
तुझे प्यार करते करते
मेरा हर जन्म कटे ………….
232.
मैं फिर भी ज़िंदा हूँ
मौत से मिलकर किसी को मार देना, फिर भी आसान है
जीते जी किसी के ज़मीर को मार कर, उसे ज़िंदा रहने पर मजबूर कर देना
क्या कहूँ ……. मैं……क्या कहूँ
वो एक लाश है
हर जगह है शमशान
जिस्म तो ज़िंदा है
पर मर गया भीतर बैठा इंसान,
देखती है वो हर ओर
नज़र आता है अंधेरा
उसके जीवन में वो रात रह जाती है
जिसका नही हो पाता कोई सवेरा,
जीती है फिर भी वो
क्योंकि साँसों का हिसाब पूरा हुआ नही
मर कर उसने इंसाफ़ पाया तो क्या
जो ज़िंदा रह कर, जीया ही नही…………….
मैं फिर भी ज़िंदा हूँ
धन्यवाद
233.
मुक्कम्मल जहाँ की खुवाहिश रखतें हैं
हम सोचते हैं की हम बहुत सस्ते हैं…………
234.
मन क्यूँ रुआंसा है
हर ओर लगता धुआंसा है
फूल खिल रहें हैं
पर मेरा दम घुट रहा है
हर ओर उजाला है
पर मेरे मन का दीपक बुझ रहा हैं
चिड़िया चहक ती है तो लगता है
मुझ पर हस्ती है
मेरे मन सुकून जाने क्या
मुझसे कह रहा है……..
खुद को ही आज पढ़ नही पा रही हूँ
जिस रह पर नही चलना चाहती
उस पर चलती जा रही हूँ…………..
235.
एक सवाल
आज नही तो कल
मन में आ ही जाता है
आख़िर लड़की होना
गुनाह क्यों बन जाता है…………….
236.
जिसे मैं ढूँढती रही
दर बदर
वो मुझे मिला
मेरे ही घर,
परख में फरख का फासला
जिस दिन ख़त्म किया,
जो मिला है ……….
उसे अपना कर
जीना शुरू किया……….
237.
तेरी आँखों में आज बग़ावत देख
एहसास हुआ तेरे दर्द का
हम सोचते थे
वक़्त की दावा ही काफ़ी है तेरे हर मर्ज़ का
हमे इल्म ना हुआ तेरी खामोशी
कब इंक़लाब में बदल गई,
ज़रूरत से अधिक लूटा
हमने तेरी सादगी को
शायद इसलिए आज किस्मत हमसे ही छल गई……………
238.
ज़माने के हिसाब से चलते रहें
ये सोच कर
कि एक ना एक दिन हम ज़माने को जीत लेंगें,
ज़माना हमसे भी होशियार निकला
हम उनके साथ कदमों को मिलाने के लिए जतन करते रहे………..
और ज़माना हमारे ही कंधों का सहारा ले आगे निकला……………….
239.
ग़लत फैमियों का असर इतना गहरा पड़ा
आज सूरज को भी देखती हूँ तो लगता है
ये भी किसी…… स्वार्थ के कारण है खड़ा……………….
240.
महोब्बत
नशा तेरा इस कदर चॅड गया
गुलाब की खुश्बू
और रंग ,
दोनो ही फीका पढ़ गया,
मेरे सनम तुझे एहसास नही
तू मेरी कमज़ोरी बन चुकी
मेरी ज़िंदगी तेरी महोब्बत के आगे
थम चुकी,
रूह तुझमे इस तरह
रम गई
तेरी साँसों के औरे में
मेरी साँसे बँध गई………..