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    मौसम का भी अपना एक अलग ही है जादू..

    241.
    मौसम का भी अपना
    एक अलग ही है जादू,
    मन की चंचलता को 
    कर देता बेकाबू,
    बरसे तो आँगन 
    हमारा महके 
    बाहें फैलाए कोयल
    भी चहके,
    भीनी भीनी सी बरसात की खुशबू
    जैसे करती हो हमसे गुफ्तगू,
    आकाश के बदलते नीले रंग
    भर देते मन में तरंग,
    बदलो की गड़गड़ाहट
    ठंडी पवन………………..
    कहती है हमसे
    झूम ले कुछ पल , ए खुदा के बंदे
    जब झूम रहा है गगन………….

    242.

    फ़ासले मिटाना चाहते हो अगर
    तो अपना लो रास्ता हैं आसान,
    जिसे अपना लिया उससे कर लो
    महोब्बत…………
    जिसे अपना नही सकते
    उसका करना सीखो सम्मान…….

    243.
    फूलों के देख मुस्कुराते हो
    मौसम के रंगों के साथ खिल जाते हो,
    हरियाली की उपज से 
    भोजन का लुफ्त उठाते हो,
    प्रकृति की खूबसूरती को निहारने

    देश – विदेश घूमने जाते हो,
    फिर भी इनके प्रति
    अपना फ़र्ज़ नही निभाते हो…………..
    इनके हेतु सजक हो जाओ
    देश को आगे बढ़ाओ

    243.
    राहों में ज़िंदगी के
    जिस पल से 
    तुम्हें हमसफ़र बना लिया
    कदम ये ज़िंदगी में
    हमने अच्छा उठा लिया,
    ढूँढते थे जिसे 
    किस्मत से उसने भी अपना लिया
    जिनसे मतलब के रिश्ते थे
    हमने उनसे फासला बना लिया ,
    जो फूल खिल रहे थे
    उनके साथ खुद को भी महका लिया,
    दिल में उनके घर बनाने से
    खुशी ने हमारे घर में पनाह लिया,
    ए महोब्बत तेरे सजदे में
    हमने दिल सिर झुका लिया,

    244.
    पिता वो सवेरा है
    जिनके साथ सब कुछ मेरा है 
    पिता वो शाम है
    जहाँ सब कुछ मेरे नाम है
    पिता है वो  सीख 
    जिसे अपना लें तो ना माँगनी पड़े कभी भीक ,
    पिता वो सम्मान है
    जिससे चलता हमारा नाम है,
    पिता वो सागर है
    जो खुद पियासा रह कर

    भरता हमारा खुशी का गागर है…….
    244.
    मन डरा – डरा सा
    घूमे फिरा- फिरा सा,
    जिसे पकड़ना चाहता है
    वो और भी दूर भाग जाता है,
    बेवक़्त के स्वप्न 
    मुझे डराने का कर रहे ज्तन,
    माँ की गोद में सिर रख
    आज सोने का है मन,
    ज़िंदगी की भीड़ में भागते – भागते 
    आज एहसास होता है
    माँ के साथ हर लम्हें में विश्‍वास होता है,
    शायद इसलिए……………..
    जैसे जैसे वक़्त का काँटा 
    हमारी उम्र बढ़ता है,
    माँ के स्नेह से लिपटे धागों को इंसान ………. समेटना चाहता है,
    सच कहता हूँ माँ
    तेरी आशीर्वाद की शक्ति का व्यखायान किया नही जा सकता,
    मैं चाहे कहीं भी हूँ
    तेरे स्मरण में इतनी ताक़त है
    की ये डर का साया भी , भाग जाता………
      माँ
    तेरा आँचल हो चाहे तेरा एहसास 
    सुकून मिलता सिर्फ़ तेरे पास ……..

    माँ की गोद में सिर रख आज सोने का है मन…………

    246.
    आस्था में विश्वास रखा
    कभी विश्वास में रखी आस्था,
    गाड़ी चलती चली गई
    क्योंकि
    साथ रहा मेरे ……..
    मेरे रब का वास्ता
    247.
    वो कहते है हमसे
    तुमने जो भी किया
    ग़लत ही किया ,
    हमने उनकी और नज़रे घुमाई
    तो बोलें
    खबरदार जो तुमने जवाब कोई भी दिया
    वो फ़ैसला सुनते गए
    हमारे सवालों को बढ़ाते गए,
    इस तरह हमें खामोश कर
    वो नादान आनंद लेते हैं
    पर शायद उन्हें इल्म नही
    कि इस तरह वे हमारे भीतर जलते आंदोलन को पनाह देते गए ……………

    248.
    ज़िंदगी की खूबसूरती पर तभ तक धूल जमी थी
    जब तक उसको देखने के नज़रिए में हमारे कमी थी …………

    249.
    व्याकुल मन
    मुरझाया सा तन
    सुना रहा है दास्तान
    किस भीड़ में खो रहा है इंसान ,

    वक़्त नही रहा
    एक दूजे के लिए
    अपनों का साथ छोड़ कमा रहें है
    जाने किस के लिए ,

    इंसान खुद को महत्वाकांक्षाओं की आग में सेक रहा है
    अपनो को तड़पता हुआ देख रहा है,

    माँ बाबा वक़्त से पहले बूड़े बना दिए
    एहसास जाने किस – समुंदर में बहा दिए,

    सोने में लिपटा है आज
    पर सो नही पाता
    पैसे की चकाचौंध से घिरा है
    पर मन में रहता सन्नाटा,

    घर लौटने का वक़्त नही
    इसलिए अब मकान में रहता है
    साथ चलने का वक़्त नही
    इसलिए आज इंसान एकेला रहता है……………….

    250.
    हम जिन गलियों में
    पलें हैं
    वो कहते हैं
    वहाँ ख़ुदग़र्ज़ लोग रहते है ,

    एक लड़की \ एक औरत
    कितना भी लंबा सफ़र करले तय
    उस पर कभी भी उंगली उठाई जा सकती है
    इस बात का सदैव बना रहता है भय ……….

    251.
    हर दिन में कई दिन जी लूँ
    हर लम्हें को सी लूँ ,
    होश में ना औउँ कभी
    तुम्हारी एक झलक से
    इतने जाम पी लूँ,

    समा बँधा रहें
    हम तुम झूमते रहें,

    वक़्त भी कुछ पल के लिए नज़रे चुरा लें
    तू मुझे पियार में इस तरह बहा लें,
    इसी दो पल की ज़िंदगी में सुकून का एहसास है
    जो भी चाहा मैने
    वो इस पल मेरे पास है

    252.
    गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर
    हर उस शक्स को प्रणाम
    जीने किसी भी रूप में दिया हो
    हमे शिक्षा का ज्ञान ,
    क्योंकि
    सीखने या सीखने की उम्र
    कभी छोटी या बड़ी नही होती,
    यदि बड़ी हों सीखने की चाह
    तो रहें कभी छोटी नही होती,

    गुरु पूर्णिमा के अवसर पर
    मेरे गुरु को प्रणाम
    और सबको प्यार भरा सलाम……………

    253.

    झूमें ये जीया
    घर आ रहें है पिया,
    जीवन के सारे रंग
    खिल जाएँगे ,
    बाते ये मन की जाने ये पक्षी
    महकाए आँगन
    नाचे सब सखी,
    उनके लए मैने
    हर लम्हा सिया
    आज मेरे पिया
    मुझे मिल जाएँगे,
    बोले ये सुई
    आरज़ू पूरी हुई
    आँगन में चरण
    कमल आएँगे ,
    होगी फूलों की वर्षा
    गूँजे हर दिशा
    उनके आने से पहले
    महके है फ़िज़ा,
    झूमें ये जिया
    घर आ रहे पिया
    जीवन के सारे रंग खिल जाएँगे
    254.
    एक ज़माना था जब

    चाँद पैसों से बाज़ार में समान बिकता था
    आज चाँद पैसों में केवल इंसानियत बिकती है
    समान नहीं
    255.
    आँखों में आँसू नही
    मगर दिल में उदासी है
    नज़ाने खुशी किस घड़ी की पियासी है ,
    हर वक़्त सोच…. अजीब- अजीब से ख्यालों से मुलाकात करवाती है
    जो सच नही उस पर यकीन करवाती है
    फिर अपनो को खोने का डर सताता है
    शुक्र है भगवान के उस नाम का …..जो
    विश्‍वास को भेज हिम्मत बाँध जाता है

    ओम नमः शिवाय
    256.
    ज़िंदगी जी रहे हैं 
    फिर भी जीने की खुवाहिश करते हैं 
    समझ नही आता  
    लोग किस उलझन में रहते हैं 
    257.
    खुशी की तलाश में
    घूमा गली गली
    एक दिन थक कर बैठ गया
    सवाल के जवाब में ऐंठ गया,
    खुशी मुझे देख हस्ती रही
    बोली
    जिस सवाल में आज तक तेरी ज़िंदगी बस्ती रही
    उससे मन को हटा लें
    जो है उमे खुद को रामा लें,

    इच्छा कर पर भटक मत 
    जो मिल जाए वो राह पकड़ अटक मत,
    मैं तो तेरे ही भीतर रहती हूँ
    बस तू देख नही पाता
    जिनमें मुझे ढूंढता है 
    उनसे वास्तव में तेरा नही है कोई नाता 
    सोनाली सिंघल
    257.
    एक पैगाम
    देश वासियों के नाम
    जब हम तिरंगा ओढ़ गहरी नींद सो जाते है
    हज़ारों दिए जलाए जाते है
    जीते जी सैनिक से मिलें ना मिलें
    पर देशवासी हमारी तस्वीरों से मिलने ज़रूर आते है
    एक पैगाम भेज रहें है आज
    भरे जसबातों से के साथ
    कि हे भारत के निवासी
    बदले में हज़ारों दियों के…… बस चाहते हैं हम एक साथी
    जो हम में वो दम भर दे
    कि जब शहीद हो जाएँ हम ,सीमा की रक्षा करते हुए
    तो वो एलाने जंग कर दे
    जय हिंद
    258.
    हारियाला सावन
    हरियाली तीज
    दिलों में बोएँ
    खुशियों के बीज
    खिले चेहरों पर लाली
    झूमें गोरी के कनों में बाली
    व्यंजनों से सजे थाली
    मोर नाचे ऐसे
    जिसे देख सावन भी बजाए ताली,

    हर्ष उल्लास हो
    सोलह शृंगार से सज़ा
    हर ग्रहणी का ताज हो ,
    शिव की आराधना हो
    पार्वती की उपासना हो,
    बड़ों का आशीर्वाद हो
    दिलों में प्रेम भाव हो
    तीज की शुभ कामनाएँ
    259.
    याद नही वो दिन
    कब माँ को गले लगा कर कहा 
    माँ तू ही है मेरा जहाँ ,
    माँ आज भी यही कहती है
    तेरी खुशी में है मेरी रज़ा
    तुझमे बस्ता है मेरा जहाँ …………
    260.
    भारत पर अभिमान करो
    उँचा उसका नाम करो,
    फक्र से सीना तान कर , कह सको भारतीए हो
    तुम ऐसा कुछ काम करो ,
    क्योंकि
    खुश नसीब हो तुम, जो यहाँ हो जाने
    याद रखो तुम इसकी मिट्टी से हो बने
    ये वही भूमि है
    जो वीरो की कुर्बानी से सनी है
    इसका तुम सम्मान करो
    खुद से उँचा उसका नाम करो
    जय भारत