341.
सिंदूर का सवाल
आज वो मुझसे कह रही थी
उसकी आवाज़ में पीड़ा बहुत गहरी थी,
उसने मुझसे किया एक सवाल
माँग में जो मेरे सिंदूर है
उसका रंग क्यों है लाल,
किस बात का ये प्रतीक है
जब की रिश्ते कहीं गुम है
केवल तनहाईयाँ ही नज़दीक है,
आख़िर किसके साथ हुआ था मेरा ब्याह
सिंदूर में मिले लाल रंग के साथ
या फिर मंडप में खाई गई , उन कसमों के पीछे छिपे भ्रम के साथ,
कि मैं भी किसी की धुलन बन इतराउंगी
अपने पति प्रेम संग जीवन बिताउंगी,
कुछ ही पल लगा
सब समझ आ गया,
किस्मत का खेल
सारे रंग दिखला गया,
क्योंकि
जिन्होने मुझे जन्म दिया
उन्होने मुझे दान दे दिया,
जिन्होने मुझे दान में लिया
उन्होने मेरा मान ना किया,
वे कहते रहे
परवरिश में मेरी कमी है
माँ बाबा कहते थे
उनके हिसाब से चलो
अब ज़िंदगी तुम्हारी वहीं थमीं है,
उसका फिर सवाल
कि अगर मुझे इस तरह करवट बदलनी ही थी?
तो मुझे बचपन में ही , ससुराल विदा कर देना था,
मुझे पालने का फ़र्ज़ उन ही को दे देना था,
शायद इस तरह मेरी ज़िंदगी कुछ आसां हो जाती
दो परिवरो के बजाए मैं ज़िंदगी भर , भार एक का ही उठाती
माँ बाबा ने अपनी खुशी के लिए मुझे पाला
फिर ज़माने की रीत को अदा करने के लिए मुझे घर से निकाला,
मेरा अपना तो कोई घर ही नही
ना ही कोई वजूद
बस ये बतलाना भूल गए
जिसके साथ मेरे सपने , उस पालकी में झूल गए,
मैं ज़िंदगी को कुछ समझ ती थी वो कुछ निकली
मैं जिस गर्व से एक से दूसरे के घर चली थी
उस गर्व की नीव खोखली निकली,
थम गई थी मैं यह सब सुनकर
मेरे पास ना था कोई जवाब
और
उसके पास बहुत थे सवाल!!!!!
अपनी कलम के ज़रिए मैं आपसे पूछती हूँ
शायद आपके पास इसका कोई हल हो
ताकि हमारी बहनों का भी एक सुनेहरा कल हो|
धन्यवाद
342.
माँ
वो धूप में खड़ी रह कर
मेरा इंतेज़ार करती ,
मुझे पसीने में लिपटा देख भी
प्यार करती
मेरी एक मुस्कुराहट के लिए
घंटों नाच करती,
माँ मेरी मुझसे बहुत प्यार करती,
माँ , मैं देश विदेश घूम रहा हूँ
किस तरह तुझे हर पल ढूँढ रहा हूँ,
उसका छोटा सा व्याख्यान करना चाहता हूँ
माँ इस चिट्ठी में , कुछ लम्हें तेरे नाम करना चाहता हूँ,
माँ के हाथ के बने खाने के लिए हर जगह तरस जाता हूँ
नींद तो बहुत दूर की चीज़ है
कोई प्यार से पुकार दे, तो उसमें तुझे ढूँढ उस पर बरस जाता हूँ
क्या बताउँ माँ
फ़ोन पर तेरे दो शब्द सुनने के लिए ही फोने मिलता हूँ
‘ बेटा तूने खाना खाया ‘
ये सुन कर ही पेट भरा पाता हूँ
हर शक्स की आँखों में सवाल होता है
कि आज क्या क्या किया,
बस एक तू ही है जो कहती है
सो जा अब ,
‘आज बहुत कुछ है किया’
बनावटी हेलो हाय करते करते जब थक जाता हूँ
एक तू ही याद आती है
जिसके आगे जैसा हूँ वैसा रह पाता हूँ,
माँ तेरी ममता के आगे सिर झुकाता हूँ
चाहे आसमाँ छूँ लूँ
पर जहाँ की खुशियाँ मैं तेरे कदमों में ही पाता हूँ,
माँ मेरी बहुत चाहती है मुझे
मेरी माँ को मैं भी बहुत चाहता हूँ|
धन्यवाद
343.
खुद से परिचय
छोटी सी शुरुआत है
इस दौर में लगता है
मुस्कुराहट का अहसास है ,
दिन लम्हा साल सब बीत जाता है
पर बिना मुस्कुराए क्या वाक्य कोई
जी पाता है ,
सुख दुख हम सबके अंग हैं
जो हम सबके अंग हैं
और मुस्कुराहट वो कोक है
जिससे हुआ हर जीव का जन्म है ,
इसलिए मुस्कुराएँ
हर हाल में मुस्कुराएँ ,
माना
दुख के बदल हटाना आसान नही
जो उन्हें हटा कर
मुस्कुरका कर आगे बढ़ जाए
उसके लिए इससे सुंदर जहान नही
इसलिए
मुस्कुराते हुए चेहरो के साथ
हर उँछ नीच के पहरों के साथ
आगे बढ़ना है
जब तक चले साँसे
हिम्मत का हाथ थाम
हर सीढ़ी चढ़ना है
344.
वो मेरा है
ये तेरा है
इस सोच ने हमको घेरा है
काश हम इस सोच के दाएरे से
बाहर निकल सकें
ये हमारा है
मान कर
साथ चल सकें …..
एकता ही बल है
एकता ही सबल है
- repeat
कविता के रूप मैं सजाई एक झलक
मैने मेरे सपनो की,
पूरी होंगी ज़रूर क्युकि दुआएँ हैं साथ अपनो की,
कि संगेमरमर का हो पत्थर,
पानी की बूंदे हो उस पर ,
ज्ञान का दिखे जिस मे आईना ,
सूरज भी देखे उसे जी भर,
ऐसा हो मेरा ये शुवेत मन,
जो पवित्र कर दे मेरा ये तन
बहती चली जाऊँ मैं बन कर निर्झर ,
मुक्त नारी जो ना हो किसी पर निर्भर
हर आँख में नई उम्मीद जगाउँ
प्रेम के बंधन से संसार को सजाउँ
हर तत्व की गहराई को भाँप सकूँ
संसार से हर बुराई को काट सकूँ…
धन्यवाद
सोनाली सिंघल
दिल्ली
346.
शिकायत ही तो की थी तुमसे
ऐसा क्या गुनाह कर दिया
तुमने सच सुनकर मुँह फेर लिया
हमने तकलीफ़ सहने के बाद भी
तुम्हें दिल दे दिया ……
347.
देख नही पाया मैं आँखों के
समुंदर को…….उसके
और जब ये सैलाब बन उठा
तो एक ही आवाज़ सुनाई दी ,
इसे अब मत बुझा
जब दिखाए तभ तुमने देखे नही
अब ये रास्ता इन्होने खुद है चुना …
धन्यवाद
348.
माना वक़्त नही है तेरे पास
पर फिर भी माँ की तू है आस
नज़ाने तू कब उसके साथ वक़्त बिताएगा
उसके साथ बैठ कर दो पल मुस्कुराएगा
भूल रहा है तू
पर वो नही भूल सकती
तेरे लिए वो अब सिर्फ़ माँ है
उसकी तू है जीने की शक्ति ,
तेरी बेरूख़ी उसकी साँसों को तड़पाती है
तेरी नज़रें माँ कें आँसू क्यों नही देख पाती है
क्यों वक़्त इन परिस्थितियों का साथ दे जाता है,
क्यों बेटा माँ को बुढ़ापे में साथ नही दे पाता है,
माना वक़्त नही है तेरे पास
फिर भी तू ही है माँ की आस
सलाम करते है उस ताक़त को
जो अब है तेरे साथ
जिसने मुस्काराकर गुज़रना सिखा दिया तुझे
देख कर माँ का चेहरा उदास ……………
349.
तेरी बेरूख़ी से भी
क्या खूब सीखा हमने
कि गम के छू लेने से
हम कमज़ोर पढ़ जाते थे
आज मुस्कुरकर गले लगाते हैं ,
तू भले ही हमें याद करे या ना करे
हम तुझे गुरु मान
इज़्ज़त से याद कर पाते है ……………
350.
शक्ति खुद की जब पहचानी
विश्वास मिला
ज़िंदगी ख़ास है
एहसास मिला …….
351.
युहीन नही महोब्बत में उनकी
हम डूब जाया करते हैं
क्या कहे……
जब जब वो देखते हमारी ओर
हम जी जाया करते हैं
जिन महफ़िलों में उनका ज़िक्र हो
हम खुद को वहाँ महफूज़ पाया करते हैं ,
क्या कहे……
उनका हाथ हो हाथ में हमारे
तो हम खुदा से मिल आया करते हैं …..
352.
नसीब से खिले थे हम
नसीब में थे कुछ गम,
नसीब में थे सुख
नसीब में था कुछ कम …..
सिर्फ़ देखने का नज़रिया बदला था
हमारे कर्मों का ही सारा घपला था………….
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353.
खुद से महोब्बत करना सीख लिया हमने
अब धोका खाने के डर से आज़ाद हैं
अब वक़्त और हालात सब अपने है
मान लो तो हक़ीक़त वरना सब सपने है
फ़र्क सिर्फ़ इतना है …………….
तब खुशियों के हम गुलाम थे
अब मलिक है
हम हमारे ही घुनेगर हैं
हम हमारे ही ग़ालिब है …………
354.
मैं फिर भी अकेला हूँ
कलयुग में जी रहा हूँ
मीलों लंबे रास्ते नाप रहा हूँ
जो मिलता है
उसके दिल में झाँक रहा हूँ
मैं फिर भी अकेला हौं ………..
भीड़ का हिस्सा हूँ
कई ज़ुबानों का किस्सा हूँ
साथ है मेरे ……मेरे ही फ़ैसले ,
फिर भी जाने क्यों पिसता हूँ
मैं अकेला हूँ,
हिम्मत भी है
निडर भी हूँ ,
जहाँ जाना चाहूं
अगले पल उधर ही हूँ ,
वक़्त का भी साथ है
मैं फिर भी अकेला हूँ ,
रोज़ तूफ़ानो से टकराता हूँ
जैसे तैसे निकल जाता हूँ
अपना अनुभव सबको बतलाता हूँ
मैं फिर भी अकेला हूँ,
नित नई किर्णो का अहसास करता हूँ
जो है उसमे विश्वास रखता हूँ
ना जाने वो कौन सा बिंदु है
जिसकी बेड़ियों से मैं खेला हूँ…
जिसके अहसास के समक्ष
मैं आज भी खुद को पाता अकेला हूँ ….
355.
मुस्कुराता हुआ चेहरा देख
मैं उसके करीब जैसे – जैसे चलता चला गया,
उसके गालों के मोती की चमक का राज़
आँखों से छलकता हुआ दिखता चला गया ,
खामोशी उसकी कहानी कह रही थी
उसके करीब जा कर एहसास हुआ
वो कितना कुछ सह रही थी …..
356.
माँ ज़िंदा है तेरी
तू भूल गया
सावन का झूला तुझे याद है
माँ का आँचल भूल गया …..
बारिश की छम-छम याद है
माँ की लोरी भूल गया ,
जिसने तुझे कलेजे से लगा कर रखा
तू उसे गले लगाना भूल गया ,
जो कान तेरी आवाज़ को तरसते थे
तू उन्हें आवाज़ लगाना भूल गया,
माँ ने तेरे लिए सब कुछ छोड़ा
तू उसे छोड़ कर चल दिया
माँ तुझे समझती नही
एक पल में ही बोल गया
ए माँ के दुलारे
बारिश की बूँदों से तू माँ के आँसुओं को तोल गया…………
तू जीना नही भूला
माँ ज़िंदा है तेरी
तू भूल गया ………….
357.
मेरे सपनो को वो पर लगाती
संग अपने वो मुझे मेरे सपनो से मिलवाती
मेरी बातों को वो इशारे से समझ जाती
कभी कभी तो वो
मुझे – मुझसे ही मिलवाती
बेटियों से जीवन की हर काली खिल जाती
ये बेटियाँ नसीब वालों को ही मिल पाती….
सारे जहाँ की खुशियाँ वो अपने स्नेह से दे जाती
माँ होने का एहसास ये बेटियाँ ही समझ पाती…….
खुश हूँ अगर मैं बिटिया हूँ
खुशनसीब हूँ अगर मैं बिटिया की माँ हूँ …….
358.
क्या खूब कहा है किसी ने
कि तू मेरे लिए मुझसे नही
तू खुद के लिए मुझसे प्रेम करता है,
जिन साँसों को तू मेरे नाम कर देने का दावा करता है ,
वो भी तू खुद के लिए ही भरता है ………….
359.
लोग कहते है
रोशनी से उजाला होता है ,
हम कहते हैं
जहाँ आप आ जाओ ,
वहाँ अंधेरे में आफताब खुद
रोशिनी के साथ होता है ……………..
360.
हार ही माननी होती
तो आपसे यहाँ मिलने नही आते
हम तो खुद को जीतने चले हैं…………….
यूँ ही नही घर से निकले हैं …………..
महोब्बत में सारे बाज़ार तुम्हें आवाज़ नही देंगे
वादा करते हैं
तुम खुद बाहों में भर कर महोब्बत का इज़हार करोगे
ये दावा करते है……….