501.
दिल की निगाहों से एक बार हमारी तरफ देखो तो सही
यक़ीनन
इश्क़ हो जा
एगा…………….
502.
दिल मेरा भटकता है
वो ढूँढे उसे हर कहीं
वो चेहरा जिससे महोब्बत है
वो रूह को मिलता नही,
बातें हैं मुलाक़ातें भी है खुवाबो में
पर मन को वो झिलता नही
हम भी अब ज़िद पकड़ कर बैठे हैं
देखें महोब्बत का हमारा फूल कैसे खिलता नही………..
503.
हारे वहीं है जो लड़े हैं
जीते वहीं हैं जो हर हाल में खडें हैं…………
504.
खुद को बेहतरीन बनाने की चाह में
बध से भत्तर हो गया,
मैं जैसा था वैसा भी ना रहा
ज़माने के हिसाब से चल नही पाया
और खुद को इस कश्मक्श में कहीं भूल आया…….
505.
मंज़िल भले ही नज़र ना आए
तू हिम्मत कम ना करना,
भले मजधार में फँस जाएँ कदम
तू स्वॅम से जंग ना करना ,
यदि एश्वर भी परीक्षा लेने आए
तू विश्वास को अपने भंग ना करना
बस अटल अडिग चलते चले जाना मुसाफिर
मंज़िल पर पहुँच कर ही नया जन्म है लेना ……….
506.
हम तज़ुर्बे से निखरते हैं
उम्र से नही
हम अपनो से बिछड़ते हैं
कर्म से नही……..
507.
ग़लती कर बैठे हम
अपनो को आज़माने की ,
चाह छूट गई अब किसी और को अपना बनाने की,
अब हम एकेले हैं ज़िंदगी की भीड़ में
और एकेले में तन्हाइयों की भीड़ है …….
508.
अब वक़्त से क्या शिकायत करूँ
आख़िर में ……………मल्हम तो वो ही लगाता है………
509.
अब लगता है मझधार में ही ठीक था
कम्सेकम उलझे सवालों को सुलझाने में व्यस्त तो था………
खाली बैठा ….. तो वक़्त को भी बर्दाश नही….
510.
2019 यूँ लहराता आए
मन रहे प्रसस्न
हर परिस्थिति में हो जशन
सम्मान करे हम सांस्कृति का
ध्यान रखें हम प्रकृति का,
आपस में प्रेम भाई – चारा बढ़े
जय हिंद का हर मुख पर नारा रहे ……
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ
511.
खुद की तलाश में
खुद को तराशना चाहता हूँ
भीतर छुपे सत्य के साथ मैं
खुद को लेकर भटकना चाहता हूँ………………
क्योंकि ढूँढ है उसकी
नाव पर बैठा हूँ मैं जिसकी ,
वो कहता है तेरे भीतर हूँ
तो मुझे छवि दिखती है किसकी……………
512.
शुक्र है इन पाँच तत्वों ने इनसां की तरह
धोके बाज़ी नही सीखी
वो आज भी हमे निरंतर चला रहे हैं
जबकि बदले में हम केवल उन्हे जला रहें हैं…..
शायद इसलिए वें निराकार हैं
और उनका लक्ष्य साकार है,,,
और हम साकार होते हुए भी
बुध्धि से निराकार हैं……….
513.
ज़िंदगी के काफिले युहीन गुज़रते चले गए
हम कभी धागो में पिरते तो कभी बिखरते चले गए ,
वो आते थे कभी कभी मिलने हमसे
जो मन को भाते चले गए ,
वो सिर्फ़ दोस्त ही थे
जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए ….
उन्हे आँसू भी नही दिखे हमारे
जिनके लिए हम बहाते चले गए,
ख़ुदगर्रज़ी की बू आती थी
हम तभ भी महोब्बत में उनकी बस्ते चले गए……
गिरते उठते चलते ज़िंदगी के सफ़र में
वो सिर्फ़ दोस्त ही निकले
जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए ………
514.
वक़्त को मन के भाव से
मैं पन्नो में समेट लेता हूँ ,
हाँ मैं मानता हूँ वक़्त बड़ा बलवान है
पर नज़र रखूं तो मैं उसकी चाल देख लेता हूँ ,
कि हम जो सोचते हैं
वो उसे पलट देता है,
पर जब हम ठान लेते हैं
तभ वो खुस साथ भी देता है………………
515.
हम उन्हें समझते नही
एसा वो कहते हैं ……
और हमे लगता है
उन्हें समझते समझते
हम खुद को खो बैठे हैं ………….
516.
कही अनकही
बातों के भँवर् में
मैं खुद ही उलझा रहता हूँ
मैं खुद की बनाई हुई कब्र में
खुद ही ज़िंदा रहता हूँ
नीला है आसमाँ
फिर भी उसके नीले पन पर
मैं सवाल उठता हूँ
खुदा की रहमत हूँ
फिर भी रहमतो को देख नही पता हूँ……
517,
सफ़र में कोई अपना मिल जाना चाहिए
मन की गुफ्तगू को गुनगुनाने का बहाना चाहिए ,
कदम ना रुक – साथ वो दीवाना चाहिए
मंज़िलों में महफ़िल का ताना बना चाहिए ,
हर लम्हे को खूबसूरत तस्वीर बाना
दिल मे बसाना – आना चाहिए ,
हम एकेले हों या महफ़िलों के मेले हो
हर हाल मे मुस्कुराना चाहिए…….
518.
बादशाहो की ज़िंदगी से
ये हम किस गुलामी के दौर में आ गए,
पानी महँगा
खून सस्ता ,
शिक्षा , संस्कृति सब लुप्त हो रही है
बस भारी रह गया है बस्ता……..
519.
जो आज है
वो कल ढल जाएगा,
जो आज रुक गया
वो कल चल जाएगा,
तू कर आज किसी के साथ धोकेबाज़ी
कल तू भी छल जाएगा,
बैर का बीज भी तू बो कर देखले
वो तेरे लिए ही पल जाएगा,
इसलिए मुसाफिर
किसी को सुख नही दे सकता कोई नही
बस दुख मत देना
आज नही तो कल ……तेरा रब तुझे
ज़रूर मिल जाएगा……….
520.
वक़्त की परिभाषा
वक़्त ही जाने ,
वो अच्छा लगता है
जब साथ देता है
वही वक़्त बुरा लगता है
जब साथ देने वालों का साथ छुड़ा देता…..